इनकम टैक्स रिटर्न भरते समय आपने गौर किया होगा कि आखिर में आपका कुल टैक्स अचानक से बढ़ जाता है। इनकम टैक्स में इस बढ़ोतरी की वजह है सेस। आपने देखा भी होगा कि इनकम टैक्स में हेल्थ एंड एजुकेशन सेस जोड़ने के बाद जो रकम बनती है उनता पैसा आपको भरना पड़ता है।
अब ये सेस कहां से आ गया । इसको इनकम टैक्स में ही क्यों नहीं जोड़ देते और इसका कैलकुलेशन किस हिसाब से करते हैं? आपके इऩ्ही सवालों को जवाब आज हम इस लेख में देंगे।
In this article we will explain what is Cess? Which Cess do income tax payers have to pay in India? And how much do you have to pay? After this we will also know the method of calculating cess.
सेस क्या होता है? What is Cess
Cess का हिंदी में अर्थ उपकर होता है। मतलब छोटा वाला टैक्स। जैसे मुख्यमंत्री के साथ उपमुख्यमंत्री होता है। जैसे प्रधानाचार्य के साथ उप प्रधानाचार्य होते हैं। इसी तरह कर के साथ साथ उपकर भी होता है।
यानी आपको कर के साथ उपकर भी देना होगा। टैक्स तो लगेगा ही सेस भी भरना पड़गा। लेकिन ये तो पक्का है कि टैक्स लगेगा तभी सेस लगेगा। अगर टैक्स नहीं लगेगा तो सेस नहीं लगेगा। मतलब सेस को लेकर उन लोगों को फिक्र नहीं करनी है जिनके ऊपर टैक्स नहीं लगता है।
इसको यूं भी समझ सकते हैं कि सेस पिछले दरवाजे से एक्स्ट्रा टैक्स लेने का तरीका है। वैसे माना जाता है कि सेस अस्थायी होता है। इसे थोड़े समय के लिए लगाया जाता है। लेकिन हमारे यहां भारत में तो सेस लग जाता है तो हटता ही नहीं । बल्कि हो सकता है कि ये आगे बढ़ भी जाए।
सेस क्यों लगाया जाता है? Why is cess imposed?
लेकिन अब सवाल उठता है कि सेस लगाने की जरूरत ही क्यों है। सरकार जब अपनी मर्जी से चाहे जितना टैक्स लगा सकती है तो फिर ये अलग से टैक्स क्यों लगाया जाता है?
जैसे राजनीतिक वजह से मुख्यमंत्री होने के बावजूद उपमुख्यमंत्री बनाया जाता है। उसी तरह राजनीतिक और आर्थिक वजहों से टैक्स के साथ साथ सेस भी लगाया जाता है।
पहली वजह ये है कि सरकार अगर टैक्स बढ़ाती है तो जनता में उसका विरोध काफी ज्यादा होता है। लेकिन सेस लगा देना आसान है क्योंकि इसको अस्थायी बताया जाता है। और इसका इतना विरोध भी नहीं होता है।
दूसरी वजह ये है कि केन्द्र सरकार जो भी इनकम टैक्स वसूलती है उसका एक हिस्सा राज्यों को दिया जाता है। लेकिन सेस को किसी के साथ बांटना नहीं पड़ता है।
दरअसल सरकार को जब किसी काम के लिए, टैक्स के अलावा, अलग से धन की जरूरत होती है तो वह थोड़ा ठीक-ठाक आमदनी वालों पर Cess लगा देती है। कभी-कभी इसे किसी मुख्य टैक्स के साथ में अतिरिक्त टैक्स जोड़कर देने की व्यवस्था बना दी जाती है। वही दूसरी तरफ, कभी-कभी इसे किसी खास जरूरत के लिए बिल्कुल अलग से भी एक छोटे टैक्स के रूप में वसूलने की व्यवस्था बना दी जाती है।
जैसे कि देश में शिक्षा (Education) के अतिरिक्त विकास और प्रसार के लिए अलग से Education Cess लगा दिया जाता है। इसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं (Health Services) की बेहतरी के लिए Health Cess या कृषि क्षेत्र की मदद के लिए Agricultural Cess वगैरह भी होते हैं। इसी तरह, किसी प्राकृतिक आपदा (Natural Disaster) की स्थिति में जनता को राहत पहुंचाने या किसी सामाजिक कल्याण (Social Walfare) के काम को पूरा करने के लिए भी Cess लगाया जा सकता है।
जब सरकार का वह खास उद्देश्य पूरा हो जाता है तो उसके लिए वसूले जाने वाले Cess को बंद भी किया जा सकता है। या फिर जरूरत के हिसाब से प्रगति न होने पर उस Cess को आगे की किसी अवधि तक बढ़ाया भी जा सकता है।
हेल्थ एंड एजुकेशन सेस क्या है?
What is Health and education cess?
वित्त वर्ष 2018-19 के पहले तक इनकम टैक्स चुकाने वालों से 3% प्रतिशत एजुकेशन सेस लिया जाता था। यह Education Cess and Secondary and higher Education Cess के रूप में होता था। इसमें, 2 प्रतिशत Education Cess के रूप में होता था (बेसिक शिक्षा के विकास के लिए) और 1 प्रतिशत Secondary and Higher Education Cess के रूप में होता था (माध्यमिक और उच्च शिक्षा के विकास के लिए) ।
बाद में, सरकार ने शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी थोड़ा अधिक ध्यान देने की जरूरत समझी तो एजुकेशन सेस को हटाकर उसकी जगह नया सेस लगाया गया Health and Education Cess। 2018 के केंद्रीय बजट में, तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने, इस सेस को लगाने की घोषणा की । और उसी दौरान सेस को 1 प्रतिशत बढ़ा दिया गयाय़
इस तरह फिलहाल सरकार इनकम टैक्स के ऊपर 4% का हेल्थ एंड एजुकेशन सेस भी लगाती है। इस सेस की वजह से आपका इनकम टैक्स आखिर में 4 प्रतिशत बढ़ जाता है।
Income पर नहीं, बल्कि सिर्फ income tax की मात्रा पर लगता है Cess
अक्सर ये कन्फ्यूजन हो जाता है कि Cess भी इनकम टैक्स की तरह, हमारी कुल आमदनी पर लगता होगा। लेकिन, वास्तव में जो 4% Health and Education Cess लगता है, वह सिर्फ आपकी आमदनी पर बने इनकम टैक्स के हिसाब से तय होता है। उदाहरण के लिए किसी साल इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से आपकी आमदनी पर कुल 10 हजार रुपए का इनकम टैक्स बना। तो इस 10 हजार का 4% निकालकर आपको Health and Education Cess के रूप में भी भुगतान करना होगा। 10 हजार का 4% होता है 400 रुपए। यानी कि आपको कुल मिलाकर 10400 रुपए चुकाने पड़ेंगे।
कृषि सेस क्या है? What is agricuture Cess
कृषि सेस का पूरा नाम है- Agriculture Infrastructure and Development Cess। इसका हिंदी में, अर्थ है-कृषि अवसंरचना एवं विकास सेस। संक्षेप में इसे AIDC या कृषि सेस नाम दिया गया है।
फिलहाल यह सबसे नया सेस है, जिसे वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान शुरू किया गया। 2021 के केंद्रीय बजट में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस सेस का लागू करने की घोषणा की थी। यह सेस पेट्रोल, डीजल, सोना और कुछ आयात किए जाने वाले कृषि प्रोडक्ट्स पर चुकाना होगा।
इस सेस से मिलने वाले पैसे को कृषि के Infrastructure (आधारभूत संरचना) को मजबूत और विकसित करने में किया जाएगा। ताकि, किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सके। यह Agriculture Cess 1 अप्रैल 2021 से शुरू हो रहे वित्तवर्ष में, लागू होगा। इनके पहले भी कृषि कल्याण सेस और स्वच्छ भारत सेस जैसे सेस प्रचलित रहे थे।
कृषि सेस की मात्रा | Amount of Agriculture cess
नए वित्तवर्ष में, विभिन्न वस्तुओं पर आपको निम्नलिखित दरों से कृषि सेस चुकाना होगा।
- पेट्रोल पर यह 2.5 रुपए प्रति लीटर कृषि सेस चुकाना होगा, जबकि डीजल पर 4 रुपए प्रति लीटर कृषि सेस चुकाना होगा।
- सोने और चांदी के आयात पर 2.5 प्रतिशत कृषि सेस चुकाना होगा।
- शराब पर 100 प्रतिशत कृषि सेस चुकाना होगा।
- क्रूड पाम ऑयल पर 17.5 प्रतिशत कृषि सेस चुकाना होगा।
- सेब (apples) पर 35 प्रतिशत कृषि सेस लगेगा।
- कोयला, लिगनाइट कोयला और पीट कोयला पर 1.5 प्रतिशत कृषि सेस चुकाना होगा।
- उर्वरक (fertilizers) जिसमें यूरिया भी शामिल है, उन पर 5 प्रतिशत कृषि सेस चुकाना होगा।
- कॉटन पर 5 प्रतिशत कृषि सेस चुकाना होगा।
कुछ अन्य सेस के नाम | Types of Cesses
1944 से लेकर जीएसटी के लागू होने .2017. तक भारत में कुल 42 सेस लगाए जा चुके थे। 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद, बहुत से सेस जीएसटी में मिला दिए गए। उसके बाद भी 7 सेस बचे रह गए। अतिरिक्त जानकारी के लिए, इनके नाम भी हम यहां दे रहे हैं।
- Cess on Exports (निर्यात पर सेस)
- Cess on Crude Oil (कच्चे तेल पर सेस)
- Health and Education Cess (स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर)
- Road and Infrastructure Cess (सडक एवं आधारभूत संरचना सेस)
- Other Construction Workers Welfare Cess (निर्माण मजदूर कल्याण सेस)
- National Calamity Contingent Duty (राष्ट्रीय आपदा एवं आकस्मिकता शुल्क)
- Duty on Tobacco and Tobacco Products (तंबाकू एवं इसके उत्पादों पर शुल्क)
- The GST Compensation Cess. (जीएसटी लागू होने के बाद, उत्पादन केंद्रित राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए भारत सरकार ने 5 साल तक GST Compensation Cess लगाने का फैसला किया था।)
- Health Cess on medical devices (2020-2021 के Finance Bill में आयातित मेडिकल उपकरणों पर लगाने की घोषणा की गई)
सेस और इनकम टैक्स में क्या अंतर होता है?
कोई सेस, किसी सामान्य टैक्स से किस प्रकार अलग होता है, यह समझने के लिए, मुख्य रूप से निम्नलिखित बिन्दुओं को आधार बना सकते हैं—
गणना के आधार में अंतर
- Regular Tax: सामान्य टैक्स जो होते हैं, वो आपकी किसी आमदनी या सौदे की रकम के प्रतिशत के रूप में होते हैं। जैसे कि इनकम टैक्स, जीएसटी, excise duty वगैरह।
- Cess: सेस का आपकी आमदनी या सौदे की रकम से मतलब नहीं होता। ये आपकी ओर से चुकाए जाने वाले टैक्स की रकम का कुछ प्रतिशत या हिस्सा होता है।
उपयोग के उद्देश्य में अंतर
इनकम टैक्स के रूप में वसूली गई रकम को सरकार, अपने किसी भी खर्च के लिए इस्तेमाल कर सकती है। लेकिन सेस के रूप में प्राप्त की गई रकम, सिर्फ उस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल हो सकती है, जिसके नाम पर वह वसूल की गई है।
उदाहरण के लिए, एजुकेशन सेस के रूप में वसूल की गई रकम का इस्तेमाल सिर्फ शिक्षा के विकास के लिए ही किया जा सकता है। इसी प्रकार कृषि सेस के रूप में प्राप्त रकम का इस्तेमाल, सिर्फ कृषि क्षेत्र के विकास के लिए किया जा सकेगा। हेल्थ सेस के रूप में वसूल की गई रकम का इस्तेमाल सिर्फ स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास के लिए किया जा सकेगा।
अगर किसी साल के दौरान, किसी खास क्षेत्र के विकास के लिए वसूला गया सेस, उस उद्देश्य में खर्च नहीं हो पाता है तो भी उसे किसी दूसरे कामों में खर्च नहीं कर सकते। बल्कि, बाद के वर्षों में भी उसे उसके लिए निर्धारित क्षेत्र पर ही खर्च करना होगा। इनकम टैक्स को खर्च करने में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं होता, सरकार उसे जब जाहें ओर जिस काम के लिए चाहे इस्तेमाल कर सकती है।
राज्यों से बंटवारे में अंतर
- सामान्य टैक्स और सरचार्ज के माध्यम से वसूली गई रकम को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक निश्चित अनुपात में बंटवारा करना होता है। जबकि, सेस को केंद्र सरकार चाहे तो राज्य के साथ चाहे तो बांट सकती है और चाहे तो नहीं भी नहीं भी बांट सकती है।
अवधि में अंतर
- सेस को सामान्य रूप से अस्थायी रूप (Temporarilly) से लगाया जाता है। उस उद्देश्य की पूर्ति होने पर उस सेस को हटाया जा सकता है। जबकि टैक्स सामान्यत: स्थायी (Permanent) प्रवृत्ति के होते हैं। ये लगातार या लंबे समय तक चलते रहते हैं। हालांकि, कभी-कभी नाम या प्रारूप बदल दिए जाते हैं।
सेस और सरचार्ज में अंतर
सरचार्ज भी किसी टैक्स के ऊपर टैक्स के रूप में लगाया जाता है, लेकिन इसको खर्च के लिए इस्तेमाल, सामान्य टैक्स की तरह, किसी भी काम के लिए किया जा सकता है। जबकि सेस का इस्तेमाल सिर्फ उसी खास उद्देश्य में किया जा सकता है, जिसके लिए वह वसूल किया गया हो।