बजट शब्द का नाम तो आपने सुना ही होगा। आपसी बातचीत में घरेलू बजट के बनने या बिगड़ने के बारे में बात भी कभी न कभी की होगी। लेकिन क्या आप देश के बजट (Union Budget Of India) के बारे में हम अच्छी तरह से जानते हैं। क्या आप इसके महत्व और कार्यप्रणाली को समझते हैं। अगर नहीं, तो हमारा ये लेख आपकी मदद करेगा। इसमें हम समझाएंगे कि आम बजट क्या होता है? इसे कैसे तैयार किया जाता है और फिर कैसे पेश किया जाता है। What is Union Budget of India and its importance in Hindi.
बजट क्या होता है? What Is Budget
आने वाले साल के लिए कमाई और खर्चे की योजना को ही बजट कहते हैं। घरेलू बजट के मामले में यह घरेलू जरूरतों और आमदनी के हिसाब से बनाया जाता है, जबकि देश या राज्य के बजट के मामले में उनकी आमदनी और खर्चों के हिसाब से बनाया जाता है। देश का बजट तैयार करने में कई स्रोतों से आने वाले पैसे और तरह-तरह के मदों में होने वाले खर्च की विस्तृत योजना पेश की जाती है और इसके साथ ही ये भी तय होता है कि अगले साल सरकार टैक्स की दरें क्या रखेगी। जितने तरह के लोग हैं उतनी तरह की डिमांड होती है। कोई टैक्स कम कराना चाहता है तो कोई ज्यादा सब्सिडी चाहता है। सबकी अपेक्षाओं का ख्याल रखना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन सरकार कोशिश करती है ज्यादा से ज्यादा लोगों की सही जरूरतें पूरी हो सकें और विकास की प्रक्रिया को तेज किया जा सके। देश का बजट बनाने के लिए, सरकार का पूरा वित्त विभाग होता है और कई महीनों के मेहनत के बाद वो बजट तैयार करता है। इतनी व्यापक तैयारी इसलिए करनी पड़ती है क्योंकि सरकार के पास कमाई के कई स्रोत होते हैं खर्च के लिए भी सैकड़ों रास्ते होते हैं।
बजट की जरूरत क्यों? Importance Of Budget
इस सारी कवायद (exercise) की जरूरत इसलिए पड़ती है, ताकि देश की अर्थव्यवस्था (economy) को पटरी पर रखा जा सके। क्योंकि अगर आमदनी और खर्च की कोई योजना नहीं होगी, तो संभव है कि खर्चे, आमदनी के के मुकाबले बहुत ज्यादा भी हो जाएं। ऐसा हुआ तो, देश की अर्थव्यवस्था ठप (shutdown) होने के कगार पर पहुंच सकता है।
ज्यादा दूर मत जाइए, अपने घर-परिवार के मामले में भी आपने ऐसा महसूस किया होगा। अगर आप अपनी कमाई के हिसाब से घर का Budget बनाकर चलते हैं तो खुद को आर्थिक रूप से ज्यादा संतुलित (Balanced) और आश्वस्त (confident) महसूस करते हैं। इसके उलट, जो लोग अपना Budget बनाकर नहीं चलते हैं, वे अक्सर आर्थिक परेशानी में घिरे रहते हैं और कभी-कभी तो भयंकर कर्ज (Debt) के बोझ में लद जाते हैं। यही बात देश या राज्य के मामले में भी लागू होती है। अगर देश की वित्तीय स्थिति (Financial Condition) को ठीक रखना है तो उसे एक बेहतर (Budget) बजट बनाना ही चाहिए।
बजट के बारे में पूरी जानकारी
केंद्र सरकार, यानी भारत सरकार, हर वित्तीय वर्ष (Financial Year) के पहले आम बजट (general budget) पेश करती है। 2017 के पहले, यह फरवरी के अंत में पेश होता रहा है। लेकिन वर्ष 2017 से यह 1 फरवरी को पेश किया जाने लगा है। अब चूंकि यह केंद्र सरकार का बजट होता है, इसलिए इसमें केंद्र सरकार की कुल प्राप्तियों (receipts) और कुल खर्चों (expenses) का लेखा-जोखा (estimation) होता है।
बजट में होता है टैक्सों का निर्धारण
किसी भी सरकार को आमदनी मुख्य रूप से करों (Taxes) के माध्यम से होती है। ये Taxes सरकार दो तरीकों से हासिल करती है-1. प्रत्यक्ष कर (Direct taxes) और 2. अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes)। प्रत्यक्ष कर, वे होते हैं, जिन्हें सरकार सीधे आपकी कमाई से काट लेती है या हासिल कर लेती है। जैसे Income Tax, Corporate Tax, TDS वगैरह। अप्रत्यक्ष कर वे होते हैं, जिन्हें सरकार आपके खर्चों के माध्यम से वसूलती है। उदाहरण के लिए, वस्तु एवं सेवा कर (Goods And Services-GST। करों से जो संभावित आमदनी होती है, उसी के हिसाब से साल भर के खर्चों का खाका तैयार किया जाता है।
करों के होते होते हैं व्यापक और दूरगामी असर
आर्थिक उददेश्यों के अलावा, टैक्स, सामाजिक (Social) और राजनीतिक (Political) स्थितियों को भी प्रभावित करने वाले होते हैं। इसलिए इनका निर्धारण बड़ी सूझ-बूझ और दूरगामी उद्देश्यों के साथ किया जाता है। यही कारण है कि हर budget में सरकार, आयकर की दरों (income tax rates) की समीक्षा (Review) करती है। जरूरत हुई तो income tax slabs और कर छूटों (Tax Exemptions) में बदलाव भी करती है। यही कारण है कि उद्यमियों, व्यापारियों, राजनीतिक संगठनों के अलावा सामान्य जनता में भी Budget को लेकर काफी उत्सुकता रहती है।
आमदनी के स्तर पर निर्भर करती है टैक्स की मात्रा
भारत में income tax, लोगों की आमदनी के स्तर (Income level) के अनुसार तय किया जाता है। एक निर्धारित सीमा तक आमदनी वाले लोगों (low-income people) को Tax Free रखा जाता है। उस सीमा के बाद जैसे-जैसे लोगों की आमदनी का स्तर ऊंचा होता जाता है, वैसे-वैसे उन पर Tax की दर भी बढ़ती जाती है। इसीलिए इनकम टैक्स के Slabs निर्धारित किए जाते हैं।
वस्तुओं और सेवाओं संबंधी टैक्स हुए बजट के दायरे बाहर
ज्यादातर वस्तुओं और सेवाओं का कारोबार और उन पर लगने वाले Tax अब GST के हिस्से बन चुके हैं। GST में शामिल वस्तुओं और सेवाओं पर Taxes के निर्धारण की जिम्मेदारी अब GST Council की हो गई है। यह Council समय-समय पर होने वाली समीक्षा बैठकों (Review Meetings) में इन Taxes की समीक्षा करती और आवश्यकता समझने पर उनमें बदलाव भी करती है। निष्कर्ष यह है कि Budget में वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में Taxes की घोषणा नहीं होती है
हालांकि, Custom Duties और पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाले टैक्स GST से बाहर हैं, तो इनके बारे में Tax Rate की घोषणा जरूर बजट में होती है
रेलवे बजट अब आम बजट में मिला दिया गया है
Railway Department, आजादी के पहले से ही भारत सरकार का एक बड़ा और महत्वपूर्ण विभाग रहा है। लंबी दूरी के सफर का यह सबसे बड़ा माध्यम रहा हैै। इसकी उपयोगिता को देखते हुए पूर्व के वर्षों में इसका अलग से बजट (Common Budget के पहले) पेश होता रहा है। 2017 के Budget से यह परंपरा खत्म हो चुकी है। अब रेलवे बजट को भी सामान्य बजट का हिस्सा बना दिया गया है। ठीक वैसे ही जैसे कि रक्षा (defence), वाणिज्य (commerce) या अन्य सभी विभागों के बजट Common Budget का हिस्सा होते हैं।
और हां, नए बजट में आपको नई ट्रेनों या special trains के बारे में घोषणा भी देखने को नहीं मिलेगी। क्योंकि अब इसे Railway Department की चालू प्रक्रिया (Ongoing Process) में डाल दिया गया है। Railway Department, जरूरत और क्षमता के हिसाब से साल में कभी भी नई ट्रेनों या special train चलाने के संबंध में घोषणा और उन पर अमल कर सकता है।
नियमित खर्चों के लिए होता है राजस्व बजट
बजट दो प्रकार के होते हैं— राजस्व बजट (Revenue budget) और पूंजी बजट (capital budget)। राजस्व बजट में सरकार के नियमित खर्चों (regular expenses) का आकलन (estimation) किया जाता है, जैसे कि कर्मचारियों का वेतन, रेलों का संचालन, सुरक्षा खर्चे, दूतावास खर्चे (embassy expenses) रक्षा तैयारियां वगैरह। loans पर ब्याज का Payment भी राजस्व खर्च (revenue expenditure) में शामिल किया जाता है।
सरकार इन खर्चों को taxes से इकट्ठा करती है। taxes से जो आमदनी होती है, उसे उस साल के सरकारी खर्चों में लगाया जाता है। सरकार को चलाने के लिए revenue budget आवश्यक होता है।
ऐसे खर्चे, जो परिसंपत्तियों (assets) का निर्माण नहीं करते, उन्हें राजस्व खर्च (revenue expenditure) कहा जाता है। केंद्र सरकार (union government) राज्य सरकारों (states) या अन्य पक्षों को जो अनुदान (grant) देती है, वह भी राजस्व खर्चों (revenue expenditure) में ही आता है। हालांकि इनसे कुछ मात्रा में परिसंपत्तियों (assets) का निर्माण भी होता है।
राष्ट्र के निर्माण के लिए होता है पूंजी बजट
capital budget का उपयोग राष्ट्र निर्माण nation-building के लिए होता है। इस बजट के तहत सरकार दीर्घकालिक बुनियादी परियोजनाओं (long-term infrastructure projects) का हिसाब लगाती है। जैसे कि सड़कें, रेल मार्ग, Power grid, बांध (dams), Broadband cables वगैरह। इन projects पर जो investment होते हैं, उन्हें पूंजी व्यय (capital expenditure) कहते हैं। इनके अलावा शेयरों, कंपनियों, loans वगैरह पर होने वाला investment भी capital expenditure के तहत होता है।
इन पूंजीगत खर्चों (capital expenditure) के लिए धन की व्यवस्था सरकार या तो पूंजी संपत्तियां (capital asset) को बेचकर करती है, या फिर उधार (borrowings) लेकर। सरकार सामान्य जनता से Bonds के माध्यम से बड़ी मात्रा में पैसा एकत्र करती है। यह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (financial institutions) जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्वबैंक (world bank) एशियाई विकास बैंक (ADB) वगैरह से भी पैसा उधार लेती है।
अंतरिम बजट या वोट ऑन अकाउंट
जब सरकार, अपना अगला वित्तीय वर्ष (financial year), पूरा करने की स्थिति में, नहीं होती तो यह अपना पूर्ण बजट (full budget) पेश नहीं करती। इसकी बजाय, वह अल्पकालिक बजट (shorter period) पेश करती है। इस अल्पकालिक बजट (shorter period) के प्रावधान ( provision) तब तक के लिए लागू होते हैं, जबतक कि अगली सरकार, अपना पूर्ण बजट (full budget) पेश नहीं करती। इसे अंतरिम बजट (interim budget) कहते हैं।
- पूर्ण बजट की तरह, अंतरिम बजट (interim budget) में भी अगले कुछ महीनों के लिए कमाई और खर्चों का estimate होता है।
- अंतरिम बजट के बाद 6 महीने के अंदर पूर्ण बजट पेश कर दिया जाना चाहिए। इसलिए अंतरिम बजट 6 महीनों से ज्यादा का नहीं होता।
- सरकार, अंतरिम बजट में, लोगों को लुभाने वाली कल्याणकारी योजनाओं (populist welfare schemes) की घोषणा नहीं कर सकती। चुनाव आयोग का इस संबंध में स्पष्ट निर्देश है।
अतिरिक्त खर्चों के लिए पेश होता है पूरक बजट
कभी-कभी सरकार का बनाया बजट भी बिगड़ जाता है। साल पूरा होने से पहले ही पैसा कम पड़ जाता है या फिर कुछ नए खर्चे निकल आते हैं। ऐसे में सरकार को अतिरिक्त पैसे की जरूरत होती है। लेकिन संसद की इजाजत के बगैर सरकार एक रुपया भी अतिरिक्त नहीं खर्च कर सकती है। ऐसे में सरकार को पूरक बजट (Supplementary Budget) लाना पड़ता है।
जब सरकार अतिरिक्त खर्च (Additional expense) के लिए वक्त से पहले छोटा बजट पेश करती है तो उसे पूरक बजट या पूरक अनुदान मांग (supplementary grants) कहा जाता है। इस बजट की प्रक्रिया भी कमोबेश आम बजट (General Budget) जैसी ही होती है।
वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक (Finance Bill and Appropriation Bill)
हर साल जब बजट आता है तो जरूरतों के हिसाब से सरकार टैक्स की दरों (tax rates) में कुछ ना कुछ बदलाव करती है। अब इन बदलावों को लागू करने के लिए कानून में बदलाव करना पड़ता है। लेकिन कानून में बदलाव तभी हो पाता है जब सरकार संसद से विधेयक (bill )पास कराए। और इसीलिए हर साल के बजट को वित्त विधेयक (finance bill) के तौर पर पेश किया जाता है।
वित्त विधेयक में कर ढांचे (tax structure) में बदलाव और दूसरे नियमों में बदलाव दर्ज होते हैं। संसद इन बदलावों को जब पास करती है तभी बजट के नए proposals लागू होते हैं। संसद को 75 दिन के अंदर finance bill पास करना होता है। हालांकि ये पूरी प्रक्रिया उसके काफी पहले ही पूरी हो जाती है। 2017 से सरकार 31 मार्च के पहले वित्त विधेयक को पास करा लेती है। इससे नए वित्त विर्ष नए बजट के प्रस्ताव लागू हो जाते हैं।
सरकार को बजट के सिलसिले में विनियोग विधेयक (appropriation bill) भी लाना पड़ता है। क्योंकि बिना संसद के इजाजत के सरकार, समेकित निधि (Consolidated fund of India) से कुछ भी खर्च नहीं कर सकती है। इसलिए इस पैसे का इस्तेमाल करने के लिए विनियोग विधेयक लाना पड़ता है।
बजट को सिर्फ लोकसभा से पास कराना जरूरी
आमतौर पर हर विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पास कराना होता है उसके बाद हो कोई विधेयक law बन पाता है। लेकिन पैसे-कौड़ी के मामले में इससे छूट दी गई है ताकि लोकसभा और राज्यसभा की अलग राय होने पर देश का system ठप ना हो जाए। अभी कुछ दिन पहले ऐसे ही टकराव के चलते अमेरिका की सरकार कुछ दिनों के लिए ठप हो गई थी। हमारे यहां इसकी संभावना ही खत्म कर दी गई है।
अगर कोई विधेयक पैसे से जुड़ा होगा यानी money bill होगा तो लोकसभा से पास होने के बाद इसे parliament से पास मान लिया जाएगा। वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक के मामले में भी यही होता है। इन्हे राज्यसभा से पास कराने की जरूरत नहीं होती है। हालांकि बजट के सभी पहलुओं पर राज्यसभा में बहस उतनी ही जोरदार होती है।
लोकसभा से पास होने के बाद राष्ट्रपति दोनों बिल को अपनी approval देते हैं। उसके बाद एक अप्रैल से नए बजट के प्रस्ताव लागू हो जाते हैं।
बजट की प्रक्रिया (Process Flow of Budget)
बजट सत्र की शुरुआत
साल भर में संसद के तीन session होते हैं। पहला बजट, दूसरा मॉनसून और तीसरा शीत सत्र। इन तीनों सत्र में सबसे लंबा और सघन सत्र Budget sessionही होता है।
बजट सत्र दो चरणों में बंटा होता है। पहला चरण सिर्फ 8-10 दिन का होता है जबकि दूसरा चरण 4-5 weeks का होता है। इन दोनों phases के बीच एक महीने का अवकाश (Recess) होता है।
बजट सत्र की शुरुआत जनवरी के आखिरी हफ्ते में होती है । ये अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक चलता है। इसके शुरू होने या खत्म होने की कोई पक्की तारीख नहीं होती है।
आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey)
बजट सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण (President Speech)से होती है। आमतौर पर उसी दिन देश का economic survey पेश किया जाता है। इस सर्वेक्षण में देश की economy की दशा और दिशा की detail होती है। इस सर्वेक्षण से आपको बजट का idea मिल जाता है।
वित्त विधेयक (Finance Bill)
पहली फरवरी को सरकार वित्त विधेयक पेश करती है। इस विधेयक को पेश करते हुए वित्त मंत्री सुबह ग्यारह बजे लोकसभा में बजट भाषण देते हैं।
शुरू में वित्त मंत्री विभिन्न government schemes की उपलब्धियों का हिसाब देते हैं। इसके बाद बताते हैं कि अलग-अलग मंत्रालयों और योजनाओं के लिए कितना पैसा allocate किया गया है। बजट भाषण के आखिर में वित्त मंत्री ये बताते हैं कि टैक्स की दरों में क्या बदलाव किया गया है। इन दरों में direct और indirect tax दोनों शामिल हैं। वित्त मंत्री के भाषण के बाद संसद की कार्यवाही अगले दिन के लिए स्थगित कर दी जाती है। भाषण खत्म करने के बाद वित्त मंत्री राज्यसभा में भी वित्त विधेयक पेश करते हैं हालांकि भाषण नहीं देते हैं।
वित्त विधेयक पर सामान्य चर्चा
बजट भाषण के बाद अगले दिन बजट प्रस्तावों पर सामान्य चर्चा होती है। इस चर्चा में policy matters उठाए जाते हैं। बजट का ये discussion 4-5 दिन चलता है। इस दौरान संसद में नियमित कार्रवाहियां भी चलती रहती है।
एक महीने के लिए संसद स्थगित
बजट पर सामान्य चर्चा के बाद संसद को एक महीने के लिए स्थगित कर दिया जाता है। ऐसे इसलिए किया जाता है ताकि सासंद बजट प्रस्तावों का अच्छी तरह से अध्ययन कर सकें।
स्थायी समिति विचार करती है
जब एक महीने के लिए संसद को स्थगित किया जाता है। उसी समय संसद की standing committees अपने-अपने क्षेत्र के बजट प्रस्तावों पर गहन चर्चा करती है। ये समितियां तय वक्त में अपनी सिफारिशें सरकार को देती हैं। हालांकि सरकार के लिए इनकी सिफारिश मानना जरूरी नहीं है।
स्थायी समिति में लोकसभा और राज्यसभा दोनों को सांसद होते हैं। कुछ विषयों पर स्थायी समिति हमेशा के लिए बनी रहती है। जैसे public accounts, public undertakings, estimates समिति आदि।
बजट पर विस्तृत चर्चा
बजट सत्र के दूसरे चरण में बजट प्रस्तावों पर सिलसिलेवार ढंग से विस्तृत चर्चा होती है। चर्चा मंत्रालयों के हिसाब से कई दिनों में बांट दी जाती है। इस बीच भी दूसरे विधायी कार्य संसद में चलते रहते हैं। बजट सत्र में सरकार कई दूसरे विधेयकों को भी पास करा लेती है।
बजट पर वोटिंग 31 मार्च से पहले
चूंकि एक अप्रैल से बजट प्रस्तावों को लागू करना होता है इसलिए सरकार उसके पहले वित्त और विनियोग विधेयकों को पास करा लेती है। इन विधेयकों को पास करने के लिए लोकसभा में वोटिंग होती है। ये वोटिंग भी हर बजट प्रस्ताव के लिए अलग-अलग होती है। यानी अगर लोकसभा चाहे तो किसी प्रस्ताव को गिरा भी सकती है। हालांकि लोकसभा में सरकार का बहुमत होने की वजह से बजट के प्रस्ताव पास हो जाते हैं।
क्या आपको पता है, अगर लोकसभा सरकार का वित्त विधेयक गिरा देती है यानी नहीं पास करती है तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ जाता है।
बजट को राष्ट्रपति की संस्तुति
लोकसभा से वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक के पास होते ही राष्ट्रपति तुरंत इसे अपने मंजूरी देते हैं ताकि बजट प्रस्ताव समय पर लागू हो सकें। तो दोस्तों ये थी आम बजट के बारे में जरूरी जानकारियां। लेख को सरल रखने के लिए हमने जटिल विषयों को छोड़ दिया है। पूरी प्रक्रिया को अगर बिल्कुल सटीक तरीके से समझना है तो संसदीय व्यवस्था की किताब आपके लिए बेहतर रहेगी।