इनकम टैक्स का पेमेंट करते समय, आपको अपने टैक्स का 4% Health and Education Cess भी अलग से जोड़कर चुकाना पड़ता है। ये Health and Education Cess टैक्स पेमेंट करने वाले हर व्यक्ति या संस्थान को चुकाना पड़ता है। इस लेख में हम समझेंगे कि सेस क्या होता है? क्याें लगाया जाता है और यह इनकम टैक्स से अलग कैसे होता है? Cess से जुड़े इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको इस लेख में मिल जाएंगे।
What is Cess and How is calculated? Information in Hindi.
CESS का फुल फार्म और हिंदी में मतलब
- What is Full form of Cess: Cess शब्द, अंग्रेजी के assess शब्द का संक्षिप्त रूप है। यानी कि Cess का फुल फॉर्म, assess को ही माना जा सकता है।
- Meaning of Cess in Hindi: assess शब्द का हिंदी में अर्थ होता है, उपकर, लगान या चुंगी या महसूल। भारत में Cess का इस्तेमाल, किसी तरह के उपकर या अतिरिक्त टैक्स के रूप में होता है। इसे मुख्य टैक्स के अलावा अलग से वसूला जाता है।
सेस क्या होता है? What is Cess
Cess, ऐसा टैक्स होता है, जिसे मुख्य टैक्स के ऊपर, लगाया जाता है। इसे मुख्य टैक्स से अलग सहायक टैक्स के रूप में भी लगाया जा सकता है। प्राय: Cess को किसी विशेष उद्देश्य के लिए ज्यादा पैसा इकट्ठा करने के लिए लगाया जाता है। जैसे कि इस समय भारत के सभी करदाताओं (Taxpayers) को अपने Income Tax के साथ में, 4% Health and Education Cess भी चुकाना पड़ता है। इस सेस के माध्यम से मिले पैसों को सरकार सिर्फ देश के लोगों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा के विकास के लिए ही खर्च करेगी। जबकि इनकम टैक्स और सरचार्ज के रूप में मिले पैसों को सरकार कहीं भी खर्च करने के लिए स्वतंत्र होगी।
आमदनी के हिसाब से नहीं, बल्कि Income Tax के हिसाब से होती है गणना: Cess की गणना, आमदनी के हिसाब से नहीं, बल्कि Income Tax की मात्रा के हिसाब से तय होती है। Health and Education Cess के मामले में भी ऐसा ही है। आपका जितना Income Tax बना है, उसका 4% निकालकर, फिर इनकम टैक्स के साथ जोड़कर, जमा करना पड़ेगा।उदाहरण के लिए रमेश की साल भर की आमदनी पर 10000 रुपए Income Tax बनता है। तो इस 10 हजार का 4% Cess के रूप में निकालना होगा, जोकि होता है 400 रुपए। इस 400 रुपए को 10 हजार रुपए इनकम टैक्स में जोड़कर कुल 14 हजार रुपए जमा करने पड़ेगा।
जिस काम के लिए वसूली, सिर्फ उसी पर खर्च किया जा सकता है: Cess की खासियत होती है कि इसे सिर्फ उसी काम पर खर्च किया जा सकता है, जिसके नाम पर इसे वसूला गया है। जैसे कि, Health and Education Cess के माध्यम से मिले पैसों को सिर्फ शिक्षा और स्वास्थ्य के विकास में खर्च किया जा सकता है। अगर उस साल पूरा पैसा खर्च नहीं हो पाता है तो भी किसी दूसरे काम में उसे नहीं खर्च किया जा सकता। बल्कि, अगले साल उसी काम पर खर्च कर सकते हैं।
किसी बड़ी आपदा से निपटने के लिए भी लगाया जा सकता है Cess: कभी कभी किसी बड़ी आपदा (disaster) पर राहत पहुचाने के लिए भी पैसा इकट्ठा करने के लिए भी सरकार Cess लगा देती है। जैसे कि वर्ष 2018 में केरल में बाढ़ से प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए, GST पर 1% calamity cess लगाया गया था। GST (Goods and Services Tax) सिस्टम में भी कुछ विलासी एवं हानिकारक वस्तुओं (sin goods and luxury items) पर cess लगाया जाता है। इसे GST Compensation Cess नाम दिया गया है। सिगरेट, पान मसाला, एयरेटेड ड्रिंक्स, कोयला, कुछ खास तरह के वाहनों व अन्य कुछ ऐसी ही हानिकारक व विलासी वस्तुओं पर यह सेस लगाया जाता है।
उद्देश्य पूरा होने के बाद सेस को हटा लिया जाता है: Cess सरकार के लिए स्थायी आय (Permanent Income) का स्रोत नहीं होता। इसका उद्देश्य पूरा होने के बाद इसे हटा भी लिया जाता है। इसे प्रत्यक्ष (direct) और अप्रत्यक्ष (indirect) दोनों तरह के taxes पर लगाया जाता है। जबकि मुख्य टैक्स जैसे कि income tax, GST, excise duty वगैरह के साथ ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं होता। इनसे इकट्ठा की गई रकम को सरकार अपने हिसाब से कामों पर खर्च करती है।
भारत में लगाए जा चुके कुछ प्रमुख cess के नाम
भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान इसे किसी खास उद्देश्य के लिए वसूले जाने वाले टैक्स के लिए, इस्तेमाल होता था। जैसे कि सिंचाई कर (irrigation-cess), शिक्षा कर (educational-cess) वगैरह। इसके बाद भी अलग-अलग समय पर, कई तरह के सेस लगाए जाते रहे हैं।
स्वच्छ भारत सेस: इसे वर्ष 2015 में लागू किया गया था। देश भर में, सड़कों, गलियों और अन्य बुनियादी संरचनाओं (infrastructure) को साफ-सुथरा रखने के लिए इसका पैसा खर्च होना था। यह 0.5% की दर से लगता था।
कृषि कल्याण सेस: इसे 2015 में लागू किया गया था। इससे इकट्ठा हुई रकम को कृषि अर्थव्यवस्था के विकास को गति देने के लिए खर्च होना था। इसे 0.5% की दर से वसूला जाता था।
रोड एंड इंन्फ्रास्ट्रक्चर सेस: वर्ष 2016 में यह सेस लगाया गया था। वाहन उत्पादन करने वाली कंपनियों से, वाहनों के उत्पादन पर यह सेस वसूला जाता था। अलग-अलग श्रेणियों के वाहन उत्पादन के हिसाब से यह 1%/2.5%/4% की दर से लगाया गया। फिलहाल इन्हें जीएसटी टैक्स में मिला दिया गया है। कुछ अन्य सेस जो अभी भी प्रचलन में हैं, उनके नाम हैं—
- प्राइमरी एजुकेशन सेस
- सेकंडरी एजुकेशन सेस
- रोड सेस
- कच्चे पेट्रोलियम ऑयल पर सेस
- तंबाकू एवं इसके उत्पादों पर NCCD
- आयातित वस्तुओं पर एजुकेशन सेस
सेस, इनकम टैक्स से अलग कैसे होता है?
अंतर का आधार | इनकम टैक्स की विशेषता | सेस की विशेषता |
वसूली और खर्च के उद्देश्य | इनकम टैक्स को सरकार अपने खर्चों के लिए वसूलती है। इसे सरकार अपनी सुविधा के हिसाब से किसी भी काम या किसी भी उद्देश्य पर खर्च कर सकती है। हर विभाग की अलग-अलग जरूरत के हिसाब से उसे कम-ज्यादा पैसा आवंटित किया जाता है। | Cess को किसी खास उद्देश्य के लिए, अतिरिक्त टैक्स के रूप में लिया जाता है। जैसे कि-Education Cess, Health Cess, Road Cess वगैरह। इसे सिर्फ उसी उद्देश्य पर खर्च कर किया जा सकता है, जिसके लिए इसे वसूल किया गया है। |
बची रकम का समायोजन | अगर किसी विभाग का पैसा बचा रह जाता है तो उसे नई जरूरत के हिसाब से समायोजित भी किया जा सकता है। | अगर, किसी वर्ष में, इकट्ठा हुआ cess, उस विशेष उद्देश्य पर खर्च नहीं होता, तो उसे किसी अन्य काम में खर्च नहीं किया जा सकता। जो बची रकम है उसे अगले वर्ष उसी काम में इस्तेमाल किया जाता है। |
राज्य सरकारों का हिस्सा | इनकम टैक्स के रूप में जो पैसा सरकार के पास इकट्ठा होता है, उसमें राज्य सरकारों को भी हिस्सा देना पड़ता है। वित्त आयोग (finance Commission) की सिफारिशों के हिसाब से हर राज्य का हिस्सा तय होता है। | मुख्य करों की तरह, Cess को राज्य सरकारों के साथ बांटने की जरूरत नहीं होती। इसे लगाने वाली सरकार (central government) ही अपने पास रखती है और अपने निर्धारित उद्देश्यों पर ही खर्च किया जाता है। |
रेट का निर्धारण | Income tax के रेट के लिए हर साल इनकम टैक्स स्लैब की घोषणा करती है, जिसमें यह निर्धारित होता है कि कितनी आमदनी (income) वाले व्यक्ति पर कितना टैक्स लगेगा। बहुत कम आमदनी वाले लोगों पर कोई टैक्स नहीं लगता। जैसे-जैसै आमदनी का स्तर बढ़ता जाता है, उस पर इनकम टैक्स का रेट भी बढ़ता जाता है। | सेस आपकी कुल आमदनी के हिसाब से नहीं लगता। बल्कि, ये आप पर बन रहे कुल इनकम टैक्स के हिसाब से लगता है। जैसे कि आप पर अगर 1000 रुपए इनकम टैक्स बनता है तो फिर आपको 1000 का 4% यानी कि 40 रुपए हेल्थ एंड एजुकेशन सेस अलग से चुकाना पड़ेगा। फाइनली आपको कुल 1040 रुपए टैक्स चुकाना पड़ेगा। |