सरकार ने 10 करोड़ रुपए से अधिक सालाना टर्न औवर वाले कारोबारियों को अपने सभी B2B सौदों पर ई-इनवॉइस जारी करना (E-Invoicing) अनिवार्य कर दिया है। B2B सौदों से मतलब, ऐसे सौदे होते हैं, जोकि एक कारोबारी से दूसरे कारोबारी के बीच होते हैं। 1 अक्टूबर 2022 से यह सिस्टम लागू है। इसके अलावा अब 100 करोड़ से आधिक सालाना टर्नओवर वाले कारोबारियों को प्रत्येक सौदे की e-invoices 7 दिन के अंदर अपलोड करना भी अनिवार्य कर दिया गया है। 1 मई 2023 से यह नियम भी लागू हो चुका है।
इस लेख में हम समझेंगे कि जीएसटी ई-इनवॉयस क्या होता है? किसे बनाना अनिवार्य है? और कैसे बनाया जाता है? What is GST e-Invoicing in Hindi
ई-इनवॉइस क्या है? What is e-Invoice
जीएसटी में e-Invoicing ऐसा सिस्टम है, जिसमें किसी सौदे की सामान्य रसीद को GSTN नेटवर्क द्वारा इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सत्यापित किया जाता है। जीएसटी नेटवर्क (GSTN) के इनवॉइस रजिस्ट्रेशन पोर्टल (IRP) द्वारा, ऐसी हर रसीद के लिए एक विशिष्ट नंबर या पहचान संख्या (identification number) भी जारी होती है।इस प्रक्रिया को, E-invoicing या e-invoice under GST के नाम से भी जाना जाता है।
e-Invoicing सिस्टम लागू होने से सभी सौदों की जानकारी ऑनलाइन और तुरंत सरकार के पास पहुंचती रहती है और टैक्स चोरी की गुंजाइश नहीं रहती। खासकर फर्जी बिल बनाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने पर रोक लगाई जा सके।
ईआरपी या सॉफ्टवेयर की मदद से बनती हैं E-Invoice? ये रसीदें (e-Invoice ) पहले किसी ERP/ accounting software की मदद से तैयार की जाती हैं। वहां से इन्हें Invoice Registration Portal (IRP) पर सत्यापन (electronic authentication) के लिए अपलोड या जमा किया जाता है।
ERP क्या होता है: ERP का फुल फॉर्म होता है Enterprise resource planning। यह सॉफ्टवेयर और टेक्नोलॉजी पर आधारित ऐसा मैनेजमेंट सिस्टम होता है, जिसमें किसी कंपनी या संस्थान की विभिन्न गतिविधियों से संबंधि डाटा को collect, store, manage, और प्रस्तुत करने की क्षमता होती है।
जीएसटी पोर्टल और ई-वे बिल पोर्टल पर दर्ज हो जाते हैं डिटेल्स: ई-इनवॉइस सिस्टम (einvoice1.gst.gov.in) द्वारा, इन रसीदों से संबंधित डीटेल्स, तुरंत के तुरंत ही GST portal और e-way bill portal पर भी ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। जिसका फायदा यह होता है कि रिटर्न GSTR-1 भरने के लिए हमें अलग से एंट्री नहीं करनी पड़ती। इसी प्रकार ई-वे बिल का part-A भी अपने आप भर जाता है।
सिर्फ कंपनियों और कारोबारियों के बीच लेन-देन में अनिवार्य: E-invoice, सिर्फ दो बिजनेस के बीच होने वाले सौदों (B2B transactions) के मामले में लागू होता है। सामान (goods) या सेवा (services) या दोनों तरह की सप्लाई के संबंध में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
E-invoicing का सिस्टम मुख्य रूप से टैक्स चोरी (evasion of tax) को रोकने के लिए बनाया गया है। लेकिन यह जीएसटी के रिटर्न भरने और पहले किए गए सौदों में किसी बदलाव के बाद reconciliations problem को खत्म करने में भी बहुत मददगार साबित हुआ है।
ध्यान दें: जीएसटी पोर्टल पर नहीं बनाई जाती ई-इनवॉयस
अक्सर लोग गलती से e-invoice का मतलब GST portal पर इनवॉइस तैयार करने से लगा लेते हैं। लेकिन वास्तव में इसका मतलब, सिर्फ किसी पहले से ERP/ accounting software पर तैयार की गई रसीदों (normally generated invoices) को जीएसटी नेटवर्क (GSTN) द्वारा सत्यापित (authenticated) कर देने भर से है। हर रसीद का सत्यापन (authenticated) होने के बाद ही उसके लिए IRN नंबर (Invoice Reference Number) जारी होता है।
E-invoice के लिए टर्नओवर की लिमिट
- फिलहाल 10 करोड़ रुपए से अधिक टर्नओवर वाले बिजनेस या कंपनियों के लिए B2B (Business-to-business) लेन-देन में ई-इनवॉइस (E-invoice) अनिवार्य है।
- आगे चलकर 1 अगस्त 2023 से 5 करोड़ सालाना टर्नओवर वाले बिजनेस व कंपनियों पर भी E-invoice अनिवार्य हो जाएगा।
- उसके बाद, कुछ समय बाद इसे 1 करोड़ सालाना टर्नओवर वाले कारोबारियों व कंपनियों पर भी लागू किया जाना है। ताकि, ज्यादा से ज्यादा कारोबारियों को E-Invoicing के दायरे में लाया जा सके।
E-invoice न जारी करने पर पेनाल्टी क्या लगती है?
अगर कोई सरकार की ओर से निर्धारित टर्नओवर लिमिट वाली कंपनी या बिजनेस e-invoice सिस्टम को अपने यहां लागू नहीं करता है तो उस पर जुर्माना (penalty) लगेगा। या तो उससे पूरा का पूरा बकाया टैक्स वसूला जा सकता है या फिर 10 हजार रुपए प्रति रसीद (invoice) के हिसाब से जुर्माना वसूला जा सकता है। इन दोनों में जो भी ज्यादा होगा, उसका भुगतान उसे करना होगा। इसके अलावा अगर वे ऐसी रसीदें (invoice) जारी करते हैं, जिन पर IRN नंबर और साइन किया हुआ QR code दर्ज नहीं है तो फिर इसे गलत (incorrect) और अपूर्ण ( incomplete) रसीदें माना जाएगा। ऐसा करने वालों से 25 हजार प्रति रसीद के हिसाब से पेनाल्टी वसूला जाएगा।
ई-इनवॉइस तैयार करने की प्रक्रिया | Steps to generate an e-invoice
जीएसटी के तहत, किसी सप्लाई के लिए e-invoice तैयार करने में आपको मुख्य रूप से 3 स्टेप्स पूरे करने होते हैं-
स्टेप 1– किसी ERP/अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर पर invoice तैयार कर लीजिए
जीएसटी में, जब इलेक्ट्रॉनिक रूप से इनवॉइस अपलोड की जाती है तो, उसमें कुछ जानकारियां या सूचनाएं एक निर्धारित क्रम में, और निर्धारित फॉर्मेट में भरी होनी चाहिए। तभी जीएसटी नेटवर्क का Invoice Registration Portal उसे स्वीकार करेगा और सत्यापित करेगा। ERP/अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर पर invoice तैयार करने में से जो सूचनाएं अनिवार्य रूप से दर्ज की जानी चाहिए वे इस प्रकार हैं-
- डॉक्यूमेंट टाइप कोड : (जैसे कि Invoice के लिए INV, Credit Note के लिए CRN, Debit Note के लिए DBN)
- सप्लायर का लीगल नेम (जैसा कि उसके पैन कार्ड में दर्ज हो)
- सप्लायर का GSTIN नंबर (e-invoice जारी करने वाले का)
- सप्लायर का पता (Address) : (बिल्डिंग नंबर/ फ्लैट नंबर, रोड/ गली संख्या वगैरह)
- सप्लायर का स्थान: जैसे कि सिटी/ टाउन/ विलेज
- सप्लायर के राज्य का कोड (GSTN नेटवर्क के मुताबिक)
- सप्लायर का पिन कोड नंबर
- डॉक्यूमेंट नंबर (यूनिक इनवॉइस नंबर)
- पिछली ओरिजिनल इनवॉइस का नंबर ( अगर डेबिट नोट एंड क्रेडिट नोट के कारण नई इनवॉइस जारी की जा रही है तो)
- डॉक्यूमेंट की तारीख ( इनवॉइस जारी करने की डेट, YYYY-MM-DD फॉर्मेट में)
- सप्लाई प्राप्त करने वाले (खरीदार) का लीगल नेम पैन कार्ड में दर्ज नाम के मुताबिक)
- सप्लाई प्राप्त करने वाले (खरीदार) का GSTIN नंबर
- खरीदार का पता (बिल्डिंग नंबर/ फ्लैट नंबर, रोड/ गली संख्या वगैरह)
- खरीदार के राज्य की कोड संख्या
- खरीदार के राज्य का नाम (लिस्ट में से सेलेक्ट करें)
- खरीदार के स्थान का पिन कोड नंबर
- खरीदार की लोकेशन ( सिटी/ टाउन/ या गांव)
- IRN (इनवॉइस रिफरेंस नंबर)
- शिपिंग के लिए GSTIN नंबर: (यहां पर उस व्यक्ति का जीएसटी नंबर डाला जाएगा जिससे माल की सप्लाई डिलीवर की जानी है। कोई अन्य व्यक्ति नहीं है तो खरीदार का ही जीएसटी नंबर डाला जाना चाहिए)
- शिपिंग से संबंधित स्थान का पिन कोड और स्टेट कोड
- जहां से माल डिस्पैच होना है, उसका नाम पता, स्थान, पिन कोड वगैरह
- सप्लाई में अगर, सेवाओं (service) की सप्लाई शामिल है तो उल्लेख करना है
- सप्लाई टाइप कोड: सप्लाई जिस प्रकार के है उसका कोड (जैसे कि बिजनेस टू बिजनेस, बिजनेस टू कंजूमर, सप्लाई टु सेज, सप्लाई टु एक्सपोर्ट, डीम्ड एक्सपोर्ट वगैरह)
- Item Description (सप्लाई आइटम का प्रकार)
- HSN Code: मुख्य सामानों और सेवाओं के एचएसएन कोड डाले जाने चाहिए
- Item_Price : सप्लाई होने वाले आइटम के रेट (बिना GST शामिल किए)
- Assessable Value: अगर किसी आइटम की कीमत में डिस्काउंट मिलना है तो डिस्काउंट के बाद का रेट (बिना GST शामिल किए)
- GST रेट: सप्लाई किए जाने वाले आइटम पर लागू जीएसटी दर
- Total IGST Value, Total CGST Value और Total SGST Value ( सब अलग-अलग दर्ज करनी पड़ती हैं)
- Total invoice Value: जीएसटी को शामिल करते हुए कुल सप्लाई की कीमत ( दशमलव के 2 अंकों तक)
फाइनल इनवॉइस की JSON file : E-Invoice जारी करने वाले विक्रेता को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसका एकाउंटिंग या बिलिंग का सॉफ्टवेयर JSON file जनरेट करने लायक हो।
स्टेप 2 : उस रसीद के लिए एक IRN नंबर जारी होगा
आप की ओर से ऊपर बताई गई, सारी सूचनाएं सबमिट करने पर e-invoice system की ओर से, उस रसीद का सत्यापन कर दिया जाता है और उसके लिए एक यूनिक IRN नंबर (Invoice Reference Number) जारी कर दिया जाता है। हो जाता है। यह नंबर e-invoice system की ओर से hash generation algorithm का इस्तेमाल करके जारी किया जाता है, इसलिए इसे hash भी कहा जाता है। कह कर बुलाया जाता है।
प्रत्येक डाक्यूमेंट के लिए 64 अंकों का IRN नंबर जारी होता है। यह सप्लायर के GSTIN + Fin. Year + Doc Type + Doc Number वगैरह को शामिल करके बनता है। फिलहाल IRN नंबर जारी करने के लिए दो तरीके इस्तेमाल होते हैं-
- ऑफलाइन टूल का इस्तेमाल करके
- API आधारित सिस्टम की मदद से
स्टेप 3: इनवॉइस का क्यूआर कोड बनाना | Generation of the QR Code
अब e-invoice system उस सौदे के लिए IRN नंबर तैयार करेगा। इसके बाद , e-invoice पर डिजिटल साइन करेगा और उससे संबंधित QR code भी जनरेट करेगा। इस QR code की मदद से, कहीं भी और कभी भी उस इनवॉइस के डिटेल देखें जा सकेंगे और सत्यापन (validation) भी किया जा सकेगा।
क्यू आर कोड के साथ किसी सप्लाई के बारे में निम्नलिखित विवरण भी दर्ज होते हैं-
- माल भेजने वाले का GSTIN नंबर
- माल प्राप्त करने वाले का GSTIN नंबर
- सप्लायर की ओर से दिया गया़ invoice number
- इनवॉइस बनने की तारीख
- उस सप्लाई की कीमत और उस पर बनने वाला कुल टैक्स
- कुल लाइन आइटम्स की संख्या
- मुख्य आइटम्स के HSN code नंबर ( ऐसे लाइन आइटम के, HSN code जिन पर सबसे ज्यादा टैक्स बनता हो)
- IRN नंबर: इसे hash के नाम से भी जाना जाता है
नोट: डिजिटल रूप से साइन किए हुए QR code के साथ जो आईआरएन नंबर (unique IRN (hash) भी होता है। जिसे केंद्रीय जीएसटी पोर्टल द्वारा तो सत्यापित (verified) किया जा सकता है। साथ ही साथ, इसे ऑफलाइन एप्स की मदद से भी सत्यापित (verified) किया जा सकता है। unique IRN की यह खासियत टैक्स अफसरों का काम आसान कर देती है। इसकी मदद से वे ऐसी जगहों पर भी किसी इनवॉइस का सत्यापन कर सकते हैं जहां पर इंटरनेट की सुविधा ना मौजूद हो। हाईवेज पर दूर-दराज के इलाकों में इंटरनेट की उपलब्धता नहीं भी हो सकती है ऐसे में unique IRN उपयोगी साबित होता है।
जीएसटी रिटर्न में अपने आप दर्ज हो जाते हैं डिटेल
आप की ओर से हस्ताक्षर किया हुआ (signed) e-invoice का data ऑनलाइन जीएसटी सिस्टम में पहुंच जाता है या को भेज दिया जाता है। यह डाटा, एक तरफ तो, वस्तु या सामान की बिक्री करने वाले (supplier) के रिटर्न GSTR-1 मैं अपने आप दर्ज हो जाता है। दूसरी तरफ, यह डाटा खरीदारी करने वाले के रिटर्न GSTR-2B/ 2A में भी अपने आप दर्ज हो जाता है। क्योंकि जीएसटी नंबर के माध्यम से सभी रजिस्टर्ड कारोबारियों के जीएसटी अकाउंट एक दूसरे से लिंक होते हैं।
जरूरत पड़ने पर E-Way Bill के ‘Part A’ में भी e-invoices के डिटेल्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका फायदा यह होगा कि E-Way Bill के ‘Part B’ में सिर्फ वाहन नंबर डालना पड़ेगा और, E-Way Bill system अपने आप उस खेप का E-Way bill तैयार कर देगा।