1 जुलाई 2017 से भारत में जीएसटी कानून लागू हो चुका है। अब यहां पर, किसी भी तरह के कारोबार पर सिर्फ एक GST टैक्स लगता है। अन्य सभी टैक्सों को भी GST में मिला दिया गया है। सामान (Goods) या सेवा (Service) किसी भी तरह का कारोबार करने पर जीएसटी टैक्स ही लगता है। देश के सभी राज्यों में, और सभी तरह के बिजनेस पर इसके नियम और प्रक्रियाएं लागू होती हैं।
GST को जब शुरू में लागू किया गया था, तो इसके नियम और प्रक्रियाएं थोड़ी कठिन थी। रिटर्न कई सारे भरने पड़ते थे और उनको भरने की की प्रक्रिया भी थोड़ा कठिन थी। व्यापारियों को उनके पालन में मुश्किलें आ रही थी। व्यापारियों की समस्याओं को देखते हुए, सरकार ने इसके कई नियमों में बदलाव किया। रिटर्न फॉर्म भरने की संख्या भी घटाई और उनकी प्रक्रिया भी आसान कर दी।
इस लेख में हम आपको जीसएटी के मौजूदा स्वरूप के बारे में बताएंगे। रजिस्ट्रेशन और टैक्स रेट संबंधी जानकारी देंगे। इसके रिटर्न फॉर्म और नए नियमों के बारे में जानकारी साझा करेंगे। तो आइए जानते हैं जीएसटी की अवधारणा और विशेषताएं।
जीएसटी की अवधारणा और विशेषताएं
GST एक प्रकार का अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) है, जिसे अब भारत में किसी तरह के सामान (goods) और सेवाओं (services) के कारोबार करने पर लगता है।
सामान (Goods) और सेवाओं (Services) के कारोबार पर लगता है GST टैक्स
GST का फुल फॉर्म है- Goods and Services tax (GST)। इसका हिंदी में मतलब होता है-माल एवं सेवा कर।
- यहां Goods से मतलब सामान है, जैसे कि, अनाज, मसाले, तेल, कुर्सी, फ्रिज, उपकरण वगैरह।
- Services से मतलब ऐसे कामों से है, जिनको कराने के बदले पेमेंट किया जाता है। जैसे डॉक्टरी, बैंकिंग, वकालत, अकाउंटेंसी, ट्रांसपोर्ट वगैरह।
भारत में अब कुछ वस्तुओं और सेवाओं को छोड़कर, ज्यादातर वस्तुओं और सेवाओं को GST के दायरे में कर दिया गया है।
कोई भी ऐसा व्यक्ति जो भारत में निम्नलिखित प्रकार की कारोबारी गतिविधियां संचालित करता है, जीएसटी में रजिस्ट्रेशन करा सकता है—
- दुकानदार/बिजनेसमैन: जैसे कि, प्रोपराइटर डीलर, सप्लायर्स, ट्रेडर्स
- सर्विस प्रोवाडर: जैसे कि, कंटेंट राइटर्स, ट्रांसपोर्टर, सिक्योरिटी एजेंसीज
- कंपनी: जैसे कि प्राइवेट लिमिटेड, पार्टनरशिप फर्म, इंडिविजुअल
तीन दर्जन से अधिक टैक्सों को GST में मिला दिया गया है
1 जुलाई 2017 को GST लागू होने के पहले भारत में वस्तुओं (Goods) और सेवाओं (Service) के उत्पादन से लेकर ट्रांसपोर्टेशन और बिक्री तक की प्रक्रिया में कई स्तरों पर अलग-अलग तरह के टैक्स लगते थे। उन सबको अब GST में मिला दिया गया है-
जीएसटी में मिलाए गए केंद्रीय करों के नाम
केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty) | भारत में वस्तुओं के उत्पादन पर यह टैक्स लगाया जाता था। केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBEC) की ओर से इसे वसूला जाता था। |
अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (Additional Excise Duties) | कुछ विशेष प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन पर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty) के अलावा, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क भी लगता था। उसे भी GST में मिला दिया गया है। |
सेवा कर (Service Tax) | जैसे कि, होटल रूम सर्विस, बैंकिंग, बीमा, एडवर्टाइजिंग, ट्रांसपोर्ट, एयर ट्रैवल एजेंट, सिक्योरिटी एजेंसी, क्लब, एसोसिएशन्स वगैरह। साल में 10 लाख रुपए से अधिक की कीमत की सेवाएं देने वालों पर, यह टैक्स लगता था। |
अतिरिक्त सीमा शुल्क (Additional Customs Duty-CVD) | विदेश से मंगाए जाने वाले सामानों पर यह अतिरिक्त कस्टम शुल्क लगाया जाता था। ताकि, उनका दाम, देश में बने सामानों के आसपास रहे। इसे भी खत्म कर GST में मिला दिया गया। |
विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क (Special Additional Duty of Customs –(SAD) | दूसरे देशों से आने वाली कुछ वस्तुओं पर 4% विशेष अतिरिक्त शुल्क (Special Additional Duty— SAD) अलग से लगाया जाता था। इसे भी GST में मिला दिया गया है। |
केंद्रीय सरचार्ज और सेस (Central Surcharges and Cess) | बहुत ज्यादा आमदनी (high income slabs) वाले लोगों और कंपनियों पर, कुछ अतिरिक्त टैक्स (Surcharge) भी लगाया जाता था। इसी तरह, किसी विशेष उद्देश्यों के लिए सरकारें Cess लगाती थीं। कई Surcharges और Cess को GST में मिला दिया गया है। |
जीएसटी में मिलाए गए राज्य करों के नाम
VAT (वैल्यू एडेड टैक्स) | वस्तुओं और सेवाओं को उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले उत्पादन और बिक्री के कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। हर स्टेज में, उसके मूल्य में भी वृद्धि बढोतरी हो जाती है। ऐसी हर मूल्यवृद्धि पर Value Added Tax (VAT) लगाया जाता था। राज्य सरकारें इसे अपने हिसाब से लगाती थीं। इसे भी GST में मिला दिया गया है। |
CST (सेंट्रल सेल्स टैक्स) | दो राज्यों के बीच व्यापार (inter-state trade) की स्थिति में, यह टैक्स लगता था। यह टैक्स उस राज्य की ओर से वसूला जाता था, जिस राज्य में संबंधित वस्तु या सेवा की बिक्री होती थी, लेकिन, जमा केंद्र सरकार के पास करना पड़ता था। |
ऑक्ट्राय कर (Octroi Tax) | शहरों में, नगर निगम की सीमा में बिक्री के लिए लाए गए सामान पर Octroi Tax लगाया जाता था। इसे स्थानीय स्तर पर, नगर निगम या नगर पालिका की ओर से लगाया और वसूला जाता था। |
प्रवेश कर (Entry Tax) | पहले, राज्य अपने यहां, किसी दूसरे राज्य से आने वाले सामान और वस्तुओं पर प्रवेश कर (Entry tax) लगा सकते थे। लेकिन, सिर्फ ऐसे सामान पर, जिसका उस राज्य में उपभोग (consumption) या वितरण (distribution) हो। |
क्रय कर (Purchase Tax) | राज्य सरकार की ओर से सामान की खरीदारी पर Purchase tax (क्रय कर) लगता था। इसे भी अब GST में मिला दिया गया है। |
विलासिता कर (Luxury Tax) | अत्यंत महंगे और सामान्य लोगों की पहुंच से दूर की वस्तुओं की खरीद और उपभोग पर विलासिता कर (Luxury Tax) लगता था। |
लॉटरी, सट्टा और जुआं पर टैक्स (Taxes on lottery, betting and gambling) | लॉटरी, जुआं (Gambling) और सट्टे (Betting) वगैरह में जीती रकम पर भी अलग टैक्स लगता था। इसे अब GST का हिस्सा बना दिया गया है। |
मनोरंजन कर (Entertainment Tax) | फिल्म टिकट, खेल प्रतियोगिताओं, संगीत समारोह, प्रदर्शनी वगैरह पर राज्य सरकारों की ओर से लगने वाले मनोरंजन टैक्स को भी अब GST का हिस्सा बना दिया गया है। |
अलग-अलग श्रेणी की वस्तुओं पर अलग-अलग रेट से GST लगता है
वस्तुओं और सेवाओं के सामाजिक महत्व के हिसाब से उन पर अलग-अलग GST Rate तय किया गया है। आवश्यकता पड़ने पर सरकार इन दरों को बदल भी देती है-
0% GST | जीवन के लिए, अत्यंत अनिवार्य वस्तुओं पर, जैसे कि, सब्जियां व फल, नमक, मैदा, दूध, दही, अंडा, मैदा, झाडू, बच्चों की पुस्तकें, न्यूज पेपर वगैरह। |
5% GST | सामान्य अनिवार्यता वाली वस्तुओं पर, जैसे कि, चीनी, चाय, कॉफी, दूध पाउडर, खाद्य तेल, कोयला, दरी, चटाई, जीवनरक्षक दवाएं वगैरह। |
12% GST | घरेलू इस्तेमाल वाली वस्तुओं पर, जैसे कि, घी, मक्खन, बादाम, फ्रूट जूस, जैम, जेली, मोबाइल, कंम्प्यूटर वगैरह। |
18% GST | सामान्य उपभोग की वस्तुओं पर, जैसे कि हेयर ऑयल, टूथपेस्ट, साबुन, और इंडस्ट्रियल इंटरमीडियरीज। |
28% GST | विलासी व गैर जरूरी वस्तुओं पर: विलासी व हानिकारक प्रभाव वाली वस्तुएं: जैसे कि सिगरेट, रेफ्रिजरेटर, सिरेमिक टाइल्स, कार, वगैरह। |
कई वस्तुएं अभी भी GST के दायरे बाहर रखी गई हैं
कुछ वस्तुओं और सेवाओं को अभी जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। उन पर पहले की तरह लागू टैक्स लागू रहेंगे।
- पेट्रोलियम: पांच पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखा गया है। ये हैं- कच्चा तेल (crude oil) डीजल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस और Aviation Turbine Fuel (ATF)। इन पर पहले की तरह ही उत्पाद शुल्क (Excise Duty) लगता रहेगा।
- शराब: उपभोक्ताओं को बिक्री के लिए बनने वाली शराब पर टैक्स लगाने और वसूल करने का अधिकार, राज्यों के पास ही रहने दिया गया।
- तंबाकू: तंबाकू उत्पादों पर GST भी लगेगा और केंद्र सरकार के पास इन पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (additional excise duty) लगाने का अधिकार भी बना रहेगा।
- मनोरंजन: सिनेमा और अन्य मनोरंजक गतिविधियों पर जो मनोरंजन कर, स्थानीय निकायों (नगर निगम, नगर पालिका वगैरह) की ओर से लगता था उसे राज्यों के पास बना रहने दिया गया है।
GST में केंद्र और राज्यों का बराबर-बराबर हिस्सा मिलता है
भारत में दोहरे जीएसटी सिस्टम (Dual GST) को अपनाया गया है। वस्तुओं और सेवाओं की सप्लाई पर GST टैक्स,केंद्र और राज्य अलग-अलग वसूलते हैं। इसे कुल चार नामों से वसूला जाता है—
- CGST: किसी राज्य के भीतर होने वाले सौदों पर केंद्र सरकार को मिलने वाला जीएसटी टैक्स।
- SGST: किसी राज्य के भीतर होने वाले सौदों पर, राज्य सरकार को मिलने वाला जीएसटी टैक्स।
- UGST: किसी केंद्रशासित राज्य के भीतर होने वाले सौदों पर, उस केंद्रशासित राज्य को मिलने वाला जीएसटी टैक्स।
- IGST: दो अलग-अलग राज्यों के बीच होने वाले सौदों पर, केंद्र सरकार को मिलने वाला टैक्स। इसे बाद में केंद्र और खरीदार राज्य के बीच बराबर-बराबर बांट दिया जाता है।
इनपुट क्रेडिट सिस्टम से, कारोबारी को दोहरा टैक्स नहीं भरना पड़ता
कारोबारियों को एक ही वस्तु पर बार-बार टैक्स न चुकाना पड़े इसके लिए Input tax credit का सिस्टम लागू किया गया है। जब कोई कारोबारी माल खरीदते समय GST चुकाता है, तो वह उसके ऑनलाइन जीएसटी खाते (GST Ledgers) में जमा (Credit) हो जाता है। बाद में जब वह व्यापारी उसी माल को बेचता है तो उसे ग्राहक से GST मिलता है। आखिर में जब रिटर्न दाखिल करते समय, अपनी कुल बिक्रियों पर GST चुकाना पड़ता है तो वह अपने पास इकट्ठा हुए Credits से उनका भुगतान कर सकता है। Credits से भुगतान के बाद जो बकाया बचता है, उसे नकद भुगतान कर देता है।
नीचे एक उदाहरण से इसे ज्यादा आसानी से समझ सकेंगे-
किसी कारोबारी ने अपनी किसी खरीद पर 300 रुपए GST चुकता किया है। इसके बदले में उसे 300 रुपए के बराबर Tax credit मिल जाएंगे। अब मान लेते हैं कि उसे अपनी किसी बिक्री पर 500 रुपए GST चुकाना है। कारोबारी इन 500 रुपए, में से 300 रुपए अपने Tax Credits से चुका सकेगा। सिर्फ बाकी के 200 रुपए उसे अलग से भुगतान करनें होंगे।
इनपुट क्रेडिट के इस्तेमाल में कुछ शर्तों का पालन अनिवार्य होता है—
- CGST चुकाने के बदले मिले Tax Credits का इस्तेमाल, सिर्फ CGST और IGST चुकाने के लिए किया जा सकता है। SGST चुकाने के लिए नहीं।
- SGST चुकाने के बदले मिले Tax Credits का इस्तेमाल, सिर्फ SGST और IGST चुकाने के लिए किया जा सकता है। CGST चुकाने के लिए नहीं।
- IGST चुकाने के बदले मिले Tax Credits का इस्तेमाल, CGST और SGST, दोनों के भुगतान के लिए कर सकते हैं।
सामान्य राज्यों में 40 लाख टर्नओवर पर GST रजिस्ट्रेशन अनिवार्य
सरकार ने सामान और सेवाओं से जुडे कारोबारियों को जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेने की अनिवार्यता तय करने की अलग-अलग शर्तें तय की हैं। इस संबंध में नियम इस प्रकार हैं—
वस्तुओं के कारोबार के लिए: वस्तुओं के मामले में, 40 लाख रुपए से अधिक सालाना टर्नओवर वाले कारोबारियों को जीएसटी में रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है। उत्तर पूर्व के राज्यों, जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कारोबारियों के लिए 20 लाख रुपए टर्नओवर पर ही रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
सेवाओं के कारोबार के लिए: Service sector में काम कर रहे कारोबारियों या कंपनियों के लिए, जीएसटी में अनिवार्य रजिस्ट्रेशन के लिए टर्नओवर की लिमिट 20 लाख रुपए रखी गई है। स्पेशल कैटेगरी वाले राज्यों के लिए यह लिमिट 10 लाख रुपए है। स्पेशल कैटेगरी वाले राज्यों के नाम नीचे दिए गए हैं।
जीएसटी कानून के तहत, विशेष दर्जे वाले राज्य
- अरुणाचल प्रदेश
- असम
- जम्मू एवं कश्मीर
- मणिपुर
- मेघालय
- मिजोरम
- नागालैंड
- सिक्किम
- त्रिपुरा
- हिमाचल प्रदेश
- उत्तराखण्ड
कुछ विशेष कारोबारों में शून्य टर्नओवर पर भी रजिस्ट्रेशन जरूरी
कुछ ऐसे कारोबार भी निर्धारित किए गए हैं, जिन्हें हर हाल में जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है। भले ही उनका टर्नओवर कितना ही कम हो। इनके नाम हैं—
- कैजुअल टैक्सेबल पर्सन: ऐसे कारोबारी, जिनका स्थायी पता किसी और राज्य में रहता है और वे किसी अन्य राज्य में अस्थायी रूप से कारोबार करते हैं। जिनका किसी फिक्स जगह पर आफिस, फैक्टरी या अस्थायी पता नहीं होता, उन्हें Casual taxable person कहते हैं। इन्हें एक बार में 90 दिनों के लिए रजिस्ट्रेशन मिलता है, जिसे आवेदन करके आगे भी बढ़वाया जा सकता है।
- नॉन रेजीडेंट टैक्सेबल पर्सन: किसी दूसरे देश का ऐसा कारोबारी, जिसका भारत में कोई स्थायी पता-ठिकाना नहीं होता और वह अस्थायी रूप में भारत में कारोबार करता है, तो उसे जीएसटी में non-resident taxable person के रूप में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य होता है।
- सप्लायर के एजेंट : किसी कंपनी या कारोबारी की तरफ से, कमीशन एजेंट, ब्रोकर, आढ़तिया वगैरह के रूप में, बिक्री या खरीद करने वालें को भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
- इनपुट सर्विस डिस्ट्रीब्यूटर्स: ऐसी कंपनी या कारोबारी, जो माल खरीदारी किसी एक मुख्य कार्यालय के माध्यम से करते हैं और फिर उन्हें कई बिक्री केंद्रों के माध्यम से बेचते हैं, उन्हें जीएसटी में, Input Service Distributors कहा जाता है। इन्हे भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
- ई-कॉमर्स एग्रीगेटर: ऑनलाइन शॉपिंग या सर्विस देने वाली कंपनियां, जैसे कि अमेजन, फ्लिपकार्ट, बिग बास्केट वगैरह। इन्हे भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
- ई-कॉमर्स एग्रीगेटर के माध्यम से बेचने वाले सप्लायर: ईकॉमर्स कंपनियों के माध्यम से अपना माल बेचने वाले कारोबारी। इन्हे भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
- रिवर्स जीएसटी मेकेनिज्म: जीएसटी के तहत टैक्स वसूलने की जिम्मेदारी, सामान्यत: माल बेचने वाले की होती है। लेकिन कुछ ऐसी स्थितियां भी तय की गई हैं, जिनमें GST वसूलने की जिम्मेदारी माल खरीदने वाले की होगी। इस उल्टे सिस्टम को Reverse GST machanism का नाम दिया गया है। इन्हें भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
- OIDAR सर्विस देने वाले: बाहरी देशों की ऐसी कंपनियां, जो , भारत के गैर जीएसटी रजिस्टर्ड लोगों को, इंटरनेट आधारित सेवाएं देती हैं। जैसे कि HotStar, Netflix, वगैरह। उन्हें Online Information and Database Access or Retrieval (OIDAR) service providers कहा जाता है। इन्हें भी रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
1.5 कराेड़ से कम टर्नओवर वालों को कंपोजिशन स्कीम लेने की छूट
छोटे कारोबारियों को बार-बार रिटर्न दाखिल करने से मुक्त रखने के लिए और रसीदें इकट्ठा करने के झंझट से बचाने के लिए जीएसटी में कंपोजिशन स्कीम अपनाने का विकल्प दिया गया है।
फिलहाल 1.5 करोड़ रुपए तक सालाना टर्नओवर वाले कर्मचारियों को कंपोजिशन स्कीम अपनाने की छूट है। उत्तर-पूर्व के विशेष दर्जे वाले राज्यों और हिमाचल प्रदेश के कारोबारियों के लिए कंपोजिशन स्कीम अपनाने के लिए टर्नओवर लिमिट 75 लाख रखी गई है।
इसमें उन्हें अपने टर्नओवर पर एक फिक्स रेट से जीएसटी चुकाने की सहूलियत दी गई है। ये फिक्स रेट, उनके कारोबार की कैटेगरी पर निर्भर करता है—
- वस्तुओं के उत्पादक और व्यापारियों के लिए— 1% GST (0.5%CGST+0.5%SGST)
- रेस्टोरेंट (शराब रहित) कारोबारियों के लिए— 5% GST (2.5 %CGST+2.5%SGST)
- सर्विस सेक्टर के कारोबारियों के लिए— 6% GST (3 %CGST+3%SGST)
- ईंटों और टाइल्स के कारोबार पर — 6% GST (3 %CGST+3%SGST)
कंपोजिशन कारोबारियों को बार-बार जीएसटी रिटर्न नहीं भरना पड़ता और कोई रसीद नहीं जमा करनी होगी। बस, हर तिमाही में एक रिटर्न (CMP-08 ) दाखिल करेंगे जिसमें पूरे तीन महीने के कारोबार का एकमुश्त हिसाब देना पड़ता है और फिर साल के अंत में सालाना रिटर्न (GSTR-4) दाखिल करना है।
लेकिन, इन्हें अपनी खरीदारियों पर चुकाए गए जीएसटी के बदले input tax credit नहीं मिलते। ये राज्य के बाहर अपना माल नहीं भेज या बेच सकते।
निम्नलिखित कैटेगरी के कारोबारी, कंपोजिशन स्कीम नहीं अपना सकते—
- दूसरे राज्यों को माल सप्लाई करने वाले (Inter state suppliers)
- ई-कॉमर्स ऑपरेटर्स के माध्यम से माल सप्लाई करने वाले
- तंबाकू, पान मसाला और आइसक्रीम का उत्पादन करने वाले
- Casual Taxable Person या Non Resident taxable person की कैटेगरी में आने वाले
अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग तरह के रिटर्न
जीएसटी में रजिस्ट्रेशन और कारोबार की भिन्नता के अनुसार, अलग-अलग तरह के रिटर्न भरने का नियम है। कब कौन सा रिटर्न भरना है, इसकी संक्षेप में जानकारी नीचे दे रहे हैं-
फॉर्म GSTR-1
सामान्य रजिस्टर्ड कारोबारियों के लिए: वस्तुओं या सेवाओं के कारोबार में, सभी बिक्रियों (Sales/outward supplies) का लेखा-जोखा, इस रिटर्न फॉर्म (GSTR 1) में भरकर सरकार के पास जमा करना पड़ता है। पिछले वर्ष के सालाना टर्नओवर के हिसाब से इसे जमा करने की अलग अलग समय सीमा होती है। जैसे कि—
- तिमाही रिटर्न: 1.5 करोड़ रुपए से कम टर्नओवर वाले कारोबारियों को हर तिमाही की बिक्री का लेखा जोखा, रिटर्न फॉर्म जीएसटीआर 1 में भरकर जमा करना पड़ता है। कोई तिमाही बीतने के तुरंत बाद वाले महीने की अंतिम तारीख तक इसे जमा करना पड़ता है।
- मासिक रिटर्न: 1.5 करोड़ रुपए से अधिक, टर्नओवर वाले कारोबारियों को हर महीने की बिक्री का लेखा जोखा, रिटर्न फॉर्म जीएसटीआर 1 में भरकर जमा करना पड़ता है। कोई महीना बीतने के तुरंत बाद वाले महीने की 11 तारीख तक इसे जमा करना पड़ता है।
फॉर्म GSTR-2: (फिलहाल स्थगित)
सामान्य रजिस्टर्ड कारोबारियों के लिए: हर महीने की खरीदारियों (Purchases/inward supplies) का लेखा-जोखा, जीएसटीआर 2 में भरकर जमा करना होता है। कारोबारियों की समस्या को देखते हुए, फिलहाल, सरकार ने इस फॉर्म को स्थगित कर रखा है।
फॉर्म GSTR-3 (फिलहाल स्थगित)
सामान्य रजिस्टर्ड कारोबारियों के लिए: GSTR-1 में दिए गए बिक्रियों के लेखा-जोखा, और GSTR-2 में दिए गए खरीदारियों के लेखा-जोखा को सम्मिलित डीटेल, GSTR- 3 में देने का नियम था। कारोबारियों की समस्या को देखते हुए, फिलहाल, सरकार ने इस फॉर्म को भी स्थगित कर रखा है।
फॉर्म GSTR-3B
शुरुआती स्टेज पर जीएसटी-1, जीएसटीआर-2 और जीएसटीआर-3 की जटिलताओं को देखते हुए सरकार, एक सिंपल फॉर्म जीएसटीआर 3-बी भरने की छूट दी है। इसमें, हर महीने की बिक्रियों और खरीदारियों का मोटा-मोटा ब्योरा (summary) देना पड़ता है।
कारोबारी महीने के तुरंत बाद वाले महीने की 20 तारीख तक इसे भरकर जमा करना पड़ता है। लेकिन जिन लोगों ने QRMP स्कीम (Quarterly return Monthly Payment) में रजिस्ट्रेशन करा रखा है उन्हें हर तिमाही पर रिटर्न दाखिल करने की छूट है। उनके लिए अंतिम तारीख कुछ राज्यों में 22 तारीख और कुछ राज्यों में 24 तारीख रखी गई है।
फॉर्म CMP-08 (शुरुआती नाम GSTR-4)
जीएसटी के तहत, जिन कारोबारियों ने कंपोजिशन स्कीम ले रखी है, उन्हें हर तिमाही के बाद यह रिटर्न फॉर्म CMP-08 भरना पड़ता है। इसमें तिमाही के दौरान हुए कारोबार का ब्योरा देना पड़ता है। पहले इस फॉर्म का नाम GSTR-4 था, जिसे बदलकर CMP-09 कर दिया गया है। अंतिम तिथि: हर तिमाही तुरंत बाद वाले महीने की 18 तारीख तक इसे भरना पड़ता है।
फॉर्म GSTR-5
Non-resident taxable person को अपने हर महीने के कारोबार का लेखा-जोखा, रिटर्न फॉर्म GSTR-5 में भरकर जमा करना पडता है। कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 20 तारीख तक इसे जमा करना पड़ता है।
फॉर्म GSTR-5A
OIDAR service providers को हर महीने के कारोबार का लेखा जोखा जीएसटी रिटर्न फॉर्म GSTR 5A में देना पड़ता है। इसे भी कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 20 तारीख तक जमा करना पड़ता है।
फॉर्म GSTR-6
Input Service Distributors को हर महीने के कारोबार का लेखा जोखा रिटर्न फॉर्म GSTR 6. में भरकर जमा करना पड़ता है। कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 13 तारीख तक।
फॉर्म GSTR-7
सरकारी कंपनियों/ विभागों सोसाइटियों वगैरह को 2.5 लाख रुपए से ज्यादा के वस्तुओं या सेवाओं के लिए भुगतान करने पर, 2 % TDS काटने का अधिकार दिया गया है। इसके डिटेल इन्हें हर महीने रिटर्न फॉर्म GSTR-7 में भरकर जमा करने पड़ते हैं।कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 10 तारीख तक।
फॉर्म GSTR-8
e-commerce operators (आनलाइन शॉपिंग की सुविधा देने वाली कंपनियों) को अपने प्लेटफॉर्म पर, किसी संस्था या कारोबारी का एक निश्चित मात्रा से अधिक goods, or services बेचने पर, Tax Collected at Source (TCS) वसूलने और सरकार के पास जमा करने का अधिकार दिया गया है। इसके डिटेल इन्हें हर महीने रिटर्न फॉर्म GSTR-8 में भरकर जमा करने पड़ते हैं। कारोबारी महीने के, तुरंत बाद वाले महीने की 10 तारीख तक।
फॉर्म GSTR-9
जीएसटी में रजिस्टर्ड सामान्य कारोबारियों (जीएसटीआर 1,2,3,3बी भरने वालों) को, हर साल एक वार्षिक रिटर्न GSTR-9 भी दाखिल करना पड़ता है। इसमें, साल भर की बिक्री, खरीद, इनपुट टैक्स क्रेडिट, क्लेम किए गए रिफंड वगैरह के डिटेल के अलावा demand created (बकाया टैक्स संबधी) देने होते हैं। वित्तीय वर्ष पूरा होने के बाद (31 दिसंबर) तक
फॉर्म GSTR 9C
जीएसटी में रजिस्टर्ड, ऐसे कारोबारी जिनका सालाना टर्नओवर 2 करोड रुपए से अधिक है, उन्हें अपने अकाउंट का Audit करवाना अनिवार्य है। उस audited annual accounts की कॉपी, रिटर्न फॉर्म FORM GSTR-9C के साथ जमा करनी होती है। ऑडिट रिपोर्ट और जीएसटी रिटर्न में आपकी ओर से भरे गए आंकड़ो से मिलान (match) होना चाहिए। वित्तीय वर्ष पूरा होने के बाद 31 दिसंबर तक।
फॉर्म GSTR-10 (Final Return)
जीएसटी रजिस्ट्रेशन Cancel होने या surrender करने की स्थिति में, रिटर्न फॉर्म GSTR-10 भरकर जमा करना पड़ता है। इसे फाइनल रिटर्न कहा जाता है। जीएसटी रजिस्ट्रेशन कैंसल होने की तारीख या फिर Cancellation Order की तारीख से 3 महीने के अंदर यह फॉर्म जमा करना आवश्यक है।
फॉर्म GSTR-11
भारत में स्थित, विदेशी दूतावासों embassies, उच्चायोगों missions , संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसियों, वगैरह यहां के टैक्स सिस्टम के दायरे में नहीं आतीं। इन्हें अपनी खरीदारियों पर चुकाए गए जीएसटी का रिफंड पाने का अधिकार होता है। इन्हें GSTIN की बजाय UIN नंबर दिया जाता है। इन संस्थाओं को अपनी ली गई goods and services के डिटेल, हर तिमाही Quarterly, पर, रिटर्न फॉर्म GSTR-11 भरकर देने होते हैं। अगर उन्होंने खरीदारी की है और फिर उन्हें रिफंड चाहिए तो। खरीदारी नहीं की है तो रिटर्न भरना जरूरी नहीं है। जिस तिमाही के लिए रिफंड क्लेम दाखिल किया है, उसके तुरंत बाद वाले महीने की 28 तारीख तक।
10 करोड़ से ऊपर टर्नओवर पर E-Envoicing अनिवार्य
1 अक्टूबर 2022 से सभी ऐसे कारोबारियों के लिए E-Invoicing अनिवार्य कर दिया गया है, जिनका सालाना टर्न ओवर 10 करोड़ रुपए है।
जीएसटी सिस्टम के तहत होने वाले सौदों की इलेक्ट्रॉनिक रसीदें जारी करने की व्यवस्था (Electronic Invoicing) शुरू की है। इसके लिए बाकायदा अलग से common e-invoice portal पोर्टल बनाया गया है। इस पर बनने वाली रसीदों के डिटेल अपने आप GST portal और e-way bill portal पर ट्रांसफर हो जाती हैं।
इससे जीएसटी रिटर्न GSTR-1 में बहुत सी सूचनाएं अपने आप अपलोड हो जाती हैं। इसी तरह E-Way Will जारी करने में भी, उस सौदे की ज्यादातर सूचनाएं अपने आप दर्ज हो जाती हैं।
50 हजार से अधिक की सप्लाई का E-WAY bill जरूरी
जीएसटी के तहत कारोबार में, सामान या खेप को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने पर, उसके साथ Electronic Bill ले जाना अनिवार्य है। इस इलेक्ट्रॉनिक बिल को ही eWay Bill नाम दिया गया है।
50 हजार रुपए से ज्यादा कीमत वाला माल ट्रांसपोर्ट से भेजने पर, उसके साथ eWay Bill होना अनिवार्य है। कुछ विशेष मामलों में, 50 हजार ये कम कीमत की सप्लाई के साथ भी eWay Bill होना अनिवार्य किया गया है।
जैसे ही eway bill जारी किया जाता है, उसका एक unique Eway Bill Number (EBN) जारी होता है। यह माल भेजने वाले (Supplier) को, माल मंगाने वाले (Reciever) को और माल लादकर ले जाने वाले (Transporter) तीनों को उपलब्ध हो जाता है।