1 जुलाई 2017 से भारत में कारोबारियों पर GST कानून लागू हो चुका है। शुरुआत में इसके कुछ नियम ज्यादा कठिन थे। रिटर्न फॉर्म भी कई सारे भरने का नियम था। आगे चलकर, कारोबारियों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए नियमों को आसान किया गया। जीएसटी रजिस्ट्रेशन से लेकर, रेट, बिलिंग, रिटर्न वगैरह की प्रक्रिया और नियमों में कई बदलाव किए गए। कुछ गैर जरूरी रिटर्न हटा भी दिए। इस लेख में हम बताएंगे कि-जीएसटी के नए नियम 2023 क्या हैं? साथ में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का स्पष्टीकरण भी दिया है। GST new Rules 2023 in Hindi
40 लाख सालाना टर्नओवर पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य
भारत में जीएसटी के संबंध में जिन राज्यों को सामान्य श्रेणी के राज्यों (Normal Category States) में रखा गया है, वहां पर सालाना 40 लाख रुपए से अधिक टर्नओवर वाले सभी कारोबारियों को GST रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है। लेकिन, सिर्फ सेवा क्षेत्र (Service Sector) तक सीमित कारोबार वालों के लिए यह लिमिट पहले की तरह 20 लाख रुपए ही बरकरार रखी गई है।
जीएसटी के तहत, जिन राज्यों को विशेष श्रेणी वाले राज्यों (Special Category States) के कारोबारियों को सालाना 20 लाख रुपये टर्नओवर पर रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है। इन स्पेशल राज्यों में, जो लोग सिर्फ सेवा क्षेत्र (Service Sector) में कारोबार करते हैं, उनके लिए रजिस्ट्रेशन हेतु टर्नओवर की लिमिट 10 लाख रुपए ही बरकरार रखी गई है।
इस तरह से नए नियमों के अनुसार फिलहाल जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लिए टर्नओवर लिमिट इस प्रकार है-
सामान्य राज्यों (Normal States) मे वस्तुओं (Goods) के कारोबार पर | 40 लाख रुपए |
सामान्य राज्यों (Normal States) में सेवाओं (Services) के कारोबार पर | 20 लाख रुपए |
विशेष राज्यों (Special States) में वस्तुओं (Goods) के कारोबार पर | 20 लाख रुपए |
विशेष राज्यों (Special States) में सेवाओं (Services) के कारोबार पर | 10 लाख रुपए |
उत्तर पूर्वी क्षेत्र के जिन राज्यों को विशेष कैटेगरी में रखा गया है, वे हैं—असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड। इनके अलावा बचे हुए सभी राज्य, सामान्य श्रेणी (Normal Category) के राज्यों की लिस्ट में रखे गए हैं।
राज्यों को नई या पुरानी लिमिट अपनाने की छूट
सरकार ने जो सामान्य राज्यों के लिए और विशेष राज्यों के लिए रजिस्ट्रेशन के लिए टर्नओवर लिमिट तय की है, कोई राज्य चाहे तो नई बढ़ोतरी को लागू कर ले। या फिर चाहे तो पुरानी लिमिट को ही बरकरार रख सकता है।
जीएसटी में रजिस्ट्रेशन के लिए, टर्नओवर की लिमिट बढ़ाने या न बढ़ाने का अधिकार राज्यों को दे दिया गया है। वे चाहें तो registration के लिए टर्नओवर की पुरानी टर्नओवर सीमा को ही जारी रख सकते हैं। या फिर नई टर्नओवर सीमा को लागू कर सकते हैं।
उत्तर-पूर्वी एवं पहाड़ी राज्यों को भी इस Limit को बढ़ाने-घटाने की छूट दी गई है। कुछ राज्यों ने अपने यहां लिमिट में बदलाव किए हैं। जैसे कि
- विशेष कैटेगरी वाले कुछ राज्यों जैसे कि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और असम ने अपने यहां वस्तुओं (Goods) के कारोबार पर रजिस्ट्रेशन के लिए, टर्नओवर की लिमिट 40 लाख कर दी है।
- विशेष कैटेगरी वाले कुछ राज्यों पुडुचेरी, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर, सिक्किम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड नें अपने यहां सेवाओं (Services) के कारोबार पर रजिस्ट्रेशन की लिमिट 20 लाख कर दी है।
- सामान्य कैटेगरी वाले तेलंगाना राज्य ने वस्तुओं (Goods) और सेवाओं (Services) के कारोबार पर रजिस्ट्रेशन के लिए पुरानी लिमिट 20 लाख रुपए ही बनाए रखी है।
1.5 करोड़ तक टर्न ओवर पर ले सकते हैं कंपोजिशन स्कीम
GST के तहत Composition Scheme लेने के लिए सालाना टर्नओवर की सीमा भी बढ़कर 1.5 करोड़ रुपए कर दी गई है। पहले 1 करोड़ रुपए तक के Turnover पर ही ये स्कीम अपनाई जा सकती थी। उल्लेखनीय है कि कंपोजिशन स्कीम अपनाने वालों को एकमुश्त जीएसटी टैक्स (Composite GST) चुकाने की छूट होती है।
सेवा कारोबारी 50 लाख टर्नओवर पर भी ले सकते हैं कंपोजिशन स्कीम: शुरू में Composition Scheme सिर्फ वस्तुओं का निर्माण (Manufacture) और कारोबार (Trading) करने वाले व्यापारियों के लिए थी। सेवाओं (services) का कारोबार करने वालों के लिए नहीं। अब 50 लाख तक टर्नओवर वाले सेवा क्षेत्र के सभी कारोबारों को कंपोजिशन स्कीम लेने की सुविधा दे दी गई है।
कंपोजिशन स्कीम के तहत एकमुश्त टैक्स की दरें: फिलहाल Composition Scheme के तहत GST निम्नलिखित दरों पर एकमुश्त चुकाने का नियम है—
बिजनेस का प्रकार | CGST | SGST | Total |
वस्तुओं के निर्माता या व्यापारी | 0.5 % | 0.5 % | 1 % |
रेस्टोरेंट (बिना शराब वाले) | 2.5 % | 2.5 % | 5 % |
अन्य प्रकार के सेवा कारोबार | 3.0 % | 3.0 % | 6 % |
ईंटों,टाइल्स वगैरह के निर्माता या कारोबारी | 3.0 % | 3.0 % | 6 % |
कंपोजिशन स्कीम में अब सिर्फ सालाना रिटर्न भरना पड़ता है : नए नियमों में Composition Scheme अपनाने वालों को हर तिमाही (Quarterly) पर रिटर्न भरने से राहत दे दी गई है। अब ऐसे कारोबारियों को साल भर में सिर्फ एक बार सालाना रिटर्न GSTR-4 ही दाखिल करना होगा। हालांकि, टैक्स हर तिमाही पर ही जमा करना होगा।
Note: मिश्रित आपूर्ति (Mixed Supply) वाली कंपनियों के लिए Composition Limit 50 लाख रुपये ही रखी गई है। इसके तहत वे कंपनियां आती हैं जो वस्तु एवं सेवा (Goods And Services) दोनों तरह की Supply करती हैं।
कुछ खास कैटेगरी के कारोबारों पर कंपोजिशन की सुविधा नहीं ले सकते
- दूसरे राज्यों को माल बेचने वाले कारोबारी (Inter State suppliers)
- तंबाकू, पान मसाला, आइसक्रीम और इनसे संबंधित पदार्थों का उत्पादन करने वाले
- ई-कॉमर्स कंपनियों (जैसे की फ्लिपकार्ट, अमेजन वगैरह) के माध्यम से व्यापार करने वाले
- कैजुअल टैक्सेबल पर्सन जो दूसरे राज्यों में अस्थायी रूप से कारोबार करते हैं
- नॉन-रेजीडेंट टैक्सेबल पर्सन, जो दूसरे देशों से अस्थायी कारोबार के लिए आते हैं
10 करोड़ से अधिक टर्नओवर वालों के लिए ई-इनवॉयसिंग अनिवार्य
जिन कारोबारियों का सालाना टर्नओवर, पिछले किसी भी वर्ष के दौरान 10 करोड़ सालाना या इससे अधिक रहा है, उन्हें अपने सौदों के लिए इलेक्ट्रॉनिक रसीदें (E-Invoices) जारी करना अनिवार्य कर दिया गया है। अक्टूबर 2022 से यह नियम लागू कर दिया गया है। वित्त वर्ष 2017-2018 से लेकर अब तक के किसी भी वर्ष को टर्नओवर को टर्नओवर की गणना में शामिल किया जाएगा।
आगे जाकर अगस्त 2023 से इस टर्नओवर लिमिट को घटाकर 5 करोड़ रुपए कर दिया जाएगा। यानी कि जिन कारोबारियों का टर्नओवर, पिछले किसी भी वर्ष के दौरान 5 करोड़ रुपए से अधिक रहा होगा, उन्हें अब अपने सौदों के लिए इलेक्ट्रॉनिक रसीदें (E-Invoices) जारी करना अनिवार्य हो जाएगा।
7 दिन के अंदर रसीदें अपलोड करना अनिवार्य: जिन कारोबारियों का सालाना टर्नओवर 100 करोड़ रुपए से अधिक है, उन्हें अपने लेन-देन की रसीदें 7 दिन के अंदर जीएसटी के IRP पोर्टल (Invoice Registration Portal) पर अपलोड करना अनिवार्य कर दिया गया है। 7 दिन के बाद न ही रसीदें जीएसटी पोर्टल पर अपलोड होंगी और न ही उन पर चुकाए गए टैक्स के बदले में इनपुट क्रेडिट का लाभ मिलेगा। 1 मई 2023 से यह नियम लागू हो गया है।
भुगतान के लिए, अलग-अलग जीएसटी टाइप
वस्तुओं की सप्लाई (मंगाने या भेजने) पर केंद्र और राज्य के लिए GST अलग-अलग चुकाना पड़ता है। केंद्र के लिए Central GST यानी कि CGST और राज्य के लिए State GST यानी कि SGST। किसी भी सौदे में दोनों (CGST और SGST) को मिलाकर वसूला जाता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी सौदे में 2 प्रतिशत GST चुकाया गया है तो यहां पर 1 % CGST के रूप में होगा और 1 % SGST के रूप में होगा।
केंद्र शासित प्रदेशों (Union Terretories) में व्यापार होने पर SGST की जगह पर UTGST चुकाना होता है। वहां पर किसी सौदे मे CGST और UTGST को मिलाकर वसूला जाता है। जब कोई सप्लाई दो राज्यों के बीच होती है तो वहां CGST और SGST की बजाय एकीकृत (मिलाजुला) जीएसटी (IGST) लगता है।
खरीदार राज्य के खाते में जाता है SGST: किसी सौदे मेें राज्य जीएसटी (SGST) वाला हिस्सा, सिर्फ उस राज्य को मिलता है, जिस राज्य में उसकी खपत होती है। उस राज्य को नहीं, जहां से माल खरीदा गया है।
IGST में भी राज्य को मिलता है बराबर हिस्सा: अब चूंकि भारत में GST के तहत CGST और SGST के रेट एक समान (Equal) हैं, इसलिए IGST में केंद्र सरकार Government और खरीदार राज्य को बराबर-बराबर हिस्सा मिलता है।
पांच तरह की अलग-अलग दरों में बंटा है GST प्रतिशत
GST के तहत अलग अलग तरह की वस्तुओं और सेवाओं पर अलग-अलग दरों पर टैक्स लगाया जाता है। लोगों के लिए वस्तुओं के महत्व और जरूरत के हिसाब से कुल मिलाकर 5 टैक्स स्लैब बनाए गए हैं।
- शून्य प्रतिशत टैक्स स्लैब: अत्यंत आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं को 0 प्रतिशत टैक्स स्लैब मेें रखा गया है। उदाहरण के लिए, बिना पैकिंग वाले, अनाज, नमक, गुड़ वगैरह।
- 5 प्रतिशत का टैक्स स्लैब: सामान्य जरूरत वाली वस्तुओं पर 5 प्रतिशत की दर से GST वसूला जाता है। चाय, काफी, मिठाई, पैकेज्ड फूड आइटम, कोयला वगैरह इस स्लैब के तहत रखे गए हैं।
- 12 प्रतिशत का टैक्स स्लैब: थोड़ा कम अनिवार्यता वाली वस्तुओं को 12 प्रतिशत टैक्स की श्रेणी में रखा गया है। उदाहरण के लिए- कंप्यूटर, जूस, प्रसंस्कृत (processed) खाद्य सामग्री वगैरह।
- 18 प्रतिशत का टैक्स स्लैब: जरूरत और विलासिता के बीच की वस्तुओं पर 18 प्रतिशत टैक्स तय किया गया है। उदाहरण के लिए- मिनरल वाटर, महंगे जूते, औद्योगिक वस्तुएं वगैरह
- 28 प्रतिशत का टैक्स स्लैब: विलासिता और नुकसानदेह चीजों को सबसे ज्यादा 28 प्रतिशत टैक्स वाली वाली सूची में रखा गया है। उदाहरण के लिए, कार, एसी, सिगरेट वगैरह।
जुलाई 2022 में कई नई चीजों पर GST लगा: जुलाई 2022 में कई खाने-पीने के पैक्ड सामानों पर 5% GST लगाने का निर्णय लिया गया था। जैसे कि-
- पैकिंग में आने वाले गेहूं, चावल, गुड़, चीनी, मुरमुरा, आटा, राई, जौ, शहद, पनीर, दही, छाछ, लस्सी, पनीर वगैरह पर 5% GST लागू किया गया।
- कृषि उद्योग व आटा उद्योग में इस्तेमाल की जाने वाली मशीनों पर भी GST की दर 6 % से बढ़ाकर 18% कर दी गई है।
- होटल में ठहरने पर अब सभी लोगों को बिल के साथ 12% GST चुकाना होगा। पहले 1000 रुपए तक के किराए पर GST नहीं लगता था।
- प्रिंटिंग, राइटिंग या ड्रॉइंग इंक, पेंसिल शार्पनर, कटिंग ब्लेड वाले चाकू, पेपर चाकू, और LED लैंप पर भी GST 12 % से बढ़ाकर 18% कर दिया गया है।
इनपुट क्रेडिट सिस्टम से घटा सकते हैं टैक्स देनदारी
GST के तहत जो टैक्स आप पहले चुकता कर चुके हैं (खरीदारियों के साथ)। उसे अपनी टैक्स देनदारी से घटा सकते हैं। इसे छोटे से उदाहरण के साथ समझते हैं—
- मान लेते हैं कि आप किसी वस्तु का निर्माण (manufacture) करते हैं।
- आपने जो माल बेचा है, उस पर जीएसटी टैक्स देनदारी बनती है— 4000 रुपए
- आपने वस्तु के निर्माण लिए जो कच्चा माल व सामान वगैरह खरीदा था उस पर आप जीएसटी चुका चुके हैं— 3200 रुपए
आप अपनी 4000 रुपए की टैक्स देनदारी को चुकता करने के लिए 3200 रुपए की Input credit का इस्तेमाल कर सकते हैं। बाकी बचे सिर्फ 800 रुपए ही आपको अलग से चुकता करने होंगे।
इनपुट क्रेडिट का भुगतान करने मेें भी नियम निश्चित हैं: जैसे कि
- IGST का भुगतान: IGST, CGST और SGST किसी भी तरह का इनपुट क्रेडिट इस्तेमाल कर सकते हैं।
- CGST का भुगतान: सिर्फ IGST और CGST किसी भी तरह का इनपुट क्रेडिट इस्तेमाल कर सकते हैं।
- SGST का भुगतान: इसके लिए आप सिर्फ IGST और SGST इनपुट क्रेडिट इस्तेमाल कर सकते हैं।
कारोबार की श्रेणी के अनुसार अलग-अलग तरह के रिटर्न
जीएसटी में रजिस्टर्ड कारोबारियों को उनकी श्रेणी के अनुसार अलग-अलग श्रेणी के रिटर्न दाखिल करने होते हैं—
रिटर्न फॉर्म का नाम | किसके द्वारा भरा जाएगा (Who have to file) |
GSTR-1 | GST में रजिस्टर्ड सामान्य कारोबारियों को यह रिटर्न (GSTR-1) बिक्रियों और उन पर चुकता किए गए टैक्स के विवरण के संबंध में दाखिल करना होता है। |
GSTR-2 | फिलहाल इसे टाल दिया गया है। (GST में रजिस्टर्ड सामान्य कारोबारियों को अपनी खरीदारियों और उन पर चुकाए गए टैक्स के संबंध में यह रिटर्न (GSTR-2) भरना था। ) |
GSTR-3 | फिलहाल इसे टाल दिया गया है। (GST में रजिस्टर्ड सामान्य कारोबारियों को अपनी बिक्रियों और खरीदारियों के विवरण के साथ-साथ टैक्स भुगतान का विवरण GSTR-3 में देना था। |
GSTR-3B | समस्त खरीदारियों, बिक्रियों और चुकता टैक्स के विवरणों के सारांश (summary) के रूप में एक छोटा फॉर्म GSTR 3B तैयार किया गया है। इसमें हर महीने की बिक्री, खरीदारियों और उन पर टैक्स संबंधी जानकारियों का मोटा-मोटा हिसाब देना होता है। |
GSTR -4 | कंपोजिशन स्कीम अपनाने वाले कारोबारियों को यह रिटर्न (GSTR-4) दाखिल करना होता था। इसे हर तिमाही पर दाखिल करना होता था। नए नियम में अब कंपोजिशन स्कीम वालों को सिर्फ साल में एक बार रिटर्न दाखिल करना होगा। |
GSTR -5 | विदेश में रहने वाले व्यक्तियों या संस्थानों को भारत में कारोबार करने की स्थिति में हर महीने यह रिटर्न (GSTR-5) भरना होता है। |
GSTR -6 | Input Service Distributor की कैटेगरी में आने वाले कारोबारियों को हर महीने यह रिटर्न (GSTR-6) भरना होता है। |
GSTR -7 | ऐसे संस्थान जिन्हें एक तय सीमा से ऊपर के सौदों पर TDS काटने का अधिकार होता है उन्हें हर महीने यह रिटर्न (GSTR-7) दाखिल करना होता है। |
GSTR -8 | ई कॉमर्स ऑपरेटर्स (जैसे कि Flipcart, Amazon वगैरह) की ओर से हर महीने यह रिटर्न दाखिल करना होता है। |
GSTR -9 | सामान्य रजिस्टर्ड कारोबारियों को यह सालाना रिटर्न भरना होता है। E Commerce कंपनियों को GSTR-9B और अकाउंट ऑडिट वाले कारोबारियों को GSTR-9C दाखिल करना होता है। |
GSTR -10 | GST Registration को कैंसल या surrender के लिए भरा जाता है। |
पांच करोड़ तक टर्नओवर वाले, तिमाही रिटर्न भर सकते हैं
जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड 5 करोड़ रुपए तक टर्नओवर वाले सामान्य कारोबारियों को भी अब हर तिमाही पर रिटर्न दाखिल करने का विकल्प दे दिया गया है। इसके लिए QRMP स्कीम (Quarterly Return Filing and Monthly Payment of Taxes scheme ) लागू की गई है। इसे अपनाने वाले कारोबारियों को हर महीने टैक्स चुकाने के बाद, हर तिमाही पर रिटर्न दाखिल करने की अनुमति होती है।
आगे कभी भी सालाना टर्न ओवर 5 करोड़ रुपए से अधिक होने पर इस स्कीम से आप बाहर हो जाएंगे। अपनी इच्छा से भी आप इस स्कीम से कभी भी अलग हो सकते हैं।
कुछ स्थितियों में रिवर्स जीएसटी चुकाने का भी नियम
जीएसटी के तहत सामान्य रूप से GsT टैक्स की वसूली सामान बेचने वाला करता है। बाद में वह सरकार को यह टैक्स जमा कर देता है। लेकिन कुछ विशेष तरह के मामलों में सामान या सेवा खरीदने वाले को ही डायरेक्ट यह टैक्स (GST) सरकार को जमा करना होता है। इसको Reverse GST System कहा जाता है।
Reverse GST System निम्नलिखित स्थितियों में काम करता है-
- A. जब रजिस्टर्ड कारोबारी किसी गैर रजिस्टर्ड कारोबारी से सामान खरीदता है: अगर कोई रजिस्टर्ड कारोबारी किसी गैर रजिस्टर्ड व्यक्ति से सामान खरीदता है तो वह उस गैर रजिस्टर्ड व्यक्ति को जीएसटी का भुगतान नहीं करेगा। बल्कि उस खरीदारी पर जितना GST बनता है, रजिस्टर्ड कारोबारी डायरेक्ट सरकार को भुगतान करेगा।
- B. ई कॉमर्स ऑपरेटर्स की ओर से Services उपलब्ध कराने पर: अगर कोई सर्विस e-commerce operator के माध्यम से उपलब्ध कराई जा रही है तो e-commerce operator पर रिवर्स जीएसटी का नियम लागू होगा। इसमें न तो सर्विस पाने वाला व्यक्ति सरकार को जीएसटी चुकाने का जिम्मेदार होता है और न ही सर्विस देने वाला व्यक्ति। बल्कि, e-commerce operator को ही जीएसटी का भुगतान करना होगा
- C. कुछ विशेष वस्तुओं और सेवाओं की खरीदारी पर: कुछ विशेष वस्तुओं और सेवाओं की सूची सरकार (CBEC) की ओर से बनाई गई है, जिन पर रिवर्स जीएसटी के तहत खरीदार सीधे सरकार को टैक्स भुगतान करता है।
50 हजार से ज्यादा का सामान मोटर वाहन से भेजने पर ई-वे बिल जरूरी
जीएसटी में रजिस्टर्ड कारोबारियों को 50 हजार रुपए से अधिक कीमत का सामान मोटर वाहन से भेजने पर उसके लिए E Way Bill जारी करना अनिवार्य है। ई वे बिल दरअसल एक प्रकार की डिजिटल रसीद होता है, जो कि Electronic Way bill के रूप में जारी होता है। इसे SMS, Android App या वेबसाइट ewaybillgst.gov.in की मदद से बनाया जा सकता है।
माल भेजने वाला, माल मंगाने वाला, माल ले जाने वाला ट्रांसपोर्टर, तीनों में से कोई भी E Way Bill जारी कर सकता है। लेकिन, इसे माल रवाना होने के पहले जारी करना अनिवार्य है। माल की खेप या वाहन वगैरह में बदलाव होने पर इसे बाद में परिवर्तित या कैंसल भी किया जा सकता है।