आजकल ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियां ज्यादा कीमत वाले सामान को No-cost EMI पर खरीदने का ऑफर देती हैं। यानी कि, जितनी कीमत है, सिर्फ उतना पैसा आपको किस्तों में चुकाना है और कोई ब्याज अलग से नहीं चुकानी पड़ेगी। मोबाइल से लेकर टीवी, वाशिंग मशीन, फ्रिज, कंप्यूटर, ज्वैलरी, फर्नीचर या कोई भी सामान आप No-cost EMI पर ले सकते हैं। बशर्ते कि आपके पास मौजूद क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड पर उस खरीदारी के लिए No-cost EMI खरीदारी के लिए सुविधा उपलब्ध है।
हमारे कई पाठकों ने पूछा था कि क्या वास्तव में No-cost EMI में किसी तरह का अतिरिक्त शुल्क नहीं लगता। इससे सामान बेचने वाली कंपनी को और लोन उपलब्ध कराने वाले बैंक या फाइनेंस कंपनी को क्या फायदा होता है?
क्योंकि, फाइनेंस के विशेषज्ञ बताते हैं कि ये No-cost EMI की सुविधा, दिखने में जितनी आसान और मुफ्त लगती है, उतनी मुफ्त आखिर में पड़ती नहीं है। ये मछली को फंसाने के लिए मुफ्त चारे की तरह इस्तेमाल की जाती है। No-cost EMI के दावे के बावजूद, बैंक और फाइनेंस, कंपनियां अप्रत्यक्ष रूप से (Indirectly) इसमें से फायदा निकाल ही लेती हैं।
इस लेख में हम बताएंगे कि No-cost EMI क्या होती है? इसका हिंदी में मतलब क्या होता है? ग्राहकों को इसके क्या फायदे और क्या नुकसान हैं? बैंक और फाइनेंस कंपनियां इससे कैसे फायदा कमाती हैं?
What is No Cost EMI meaning in Hindi? What are the Benefits and Disadvantages of EMI?
No Cost EMI क्या होती है? Meaning in Hindi
जब ग्राहक को कोई वस्तु या सेवा, बिना ब्याज वाली किस्तों (Installments) में चुकाने की सुविधा दी जाती है, तो उसे No Cost EMI कहते हैं। इस प्रक्रिया में बैंक अपनी पूरी ब्याज को, छूट (Discount) के रूप में छोड़ देते हैं। सामान या सेवा बेचने वाली कंपनियां बैंकों या क्रेडिट कार्ड जारी करने वाली कंपनियों के साथ समझौता करके ये सुविधा अपने ग्राहकों को दे पाती हैं।
उदाहरण के लिए, आपने कोई 30 हजार रुपए का सामान 6 महीनों की No-Cost EMI पर खरीदा है। तो आपको 6 महीनों तक सिर्फ 5 हजार रुपए हर महीने के हिसाब से भुगतान करना होगा। इसमें कोई ब्याज आपसे नहीं ली जाएगी और प्रोसेसिंग फीस भी नहीं लगेगी। इस तरह से ग्राहक जो किस्तें भरता है, उसमें उसे ब्याज के रूप में अतिरिक्त लागत नहीं चुकानी पड़ती। इसलिए इसे बिना लागत वाली किस्तें या No Cost EMI कहा जाता है।
बैंक को इसमें फायदा यह होता है कि उसे नए ग्राहकों को लुभाने का मौका मिलता है और पुराने गाहकों को जोड़े रखने में भी मदद मिलती है। उन्हें भी बिना कोई पैसा खर्च किए अपने ब्रांड की पहुंच बढ़ाने और ग्राहक संकलन (customer acquisition) में मदद मिलती है। साथ ही सामान बनाने वाली कंपनियां भी उन सौदों में कुछ प्रतिशत बैंकों को दे देती हैं। इस तरह से ग्राहक, बैंक और कंपनी सभी मुनाफे में रहते हैं।
लेकिन,फाइनेंशियल एक्सपर्ट, No-cost EMI को सिर्फ छलावा बताते हैं और ग्राहकों को मूर्ख बनाने का हथियार कहते हैं। उनके तर्कों में कितना दम है और हकीकत क्या है? आगे के पैराग्राफों में हम इन चीजों को समझने की कोशिश करेंगे।
नो कॉस्ट ईएमआई के पीछे कंपनियों का माइंड गेम
पहले सामान या सेवा बेचने वाली कंपनियां बड़े सामानों की खरीद पर 0 प्रतिशत ब्याज वाले लोन देने का दावा करती थीं। 17 सितंबर 2013 को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपना एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें कहा गया कि zero per cent interest वाली कोई चीज नहीं होती यानी कि कोई भी लोन ब्याज मुक्त नहीं होता।
आरबीआई का यह सर्कुलर कहता है कि क्रेडिट कार्ड बकाया पर Zero Percent EMI स्कीम में ब्याज की रकम, अक्सर Processing fees के रूप में वसूल कर ली जाती है। उसी तरह कुछ बैंक अपने लोन का ब्याज उन सामानों की कीमत में शामिल करके वसूल रहे हैं। मतलब यह कि No-cost EMI सिर्फ ग्राहकों को बेवकूफ बनाकर और लालच देकर बिक्री बढ़ाने का तरीका है। इस कथन के पीछे जो कहानी है, उसे आगे दिए गए तर्कों से आप आसानी से समझ सकेंगे।
1. सामान या सेवा पर मिलने वाले डिस्काउंट ग्राहक को नहीं मिलते
ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियां या स्टोर, किसी सामान या सेवा को उपलब्ध कराने वाली कंपनी से पहले ही अच्छा-खासा Discount (छूट) तय कर लेती हैं। उस डिस्काउंट का फायदा No Cost EMI पर खऱीदने वाले ग्राहकों को नहीं मिलता। आपको तो लगता है कि, बिना ब्याज के सामान मिल गया, जबकि ब्याज के बराबर या उससे भी ज्यादा शुल्क, पहले ही वसूला जा चुका होता है।
उदाहरण के लिए, कोई सामान 30 हजार रुपए का है और उस पर 10% का डिस्काउंट मिल रहा है। आप अगर इसे उसी समय पूरा देकर लेते हैं तो ये आपको 27 हजार रुपए का पड़ेगा। अब अगर आपने इसे No Cost EMI पर लिया तो आपको ये 10% का डिस्काउंट नहीं मिलेगा और आपको पूरे के पूरे 30 हजार रुपए के हिसाब से किस्त बनाकर दे दी जाती हैं। कभी-कभी तो यह डिस्काउंट 16 से 24 प्रतिशत के आसपास होता है, जोकि आपको No Cost EMI के साथ नहीं मिला होता है।
2. No Cost EMI की किस्तों के साथ प्रोसेसिंग फीस जुड़कर आती है
नो कोस्ट ईएमआई, के तहत जो क्रेडिट कार्ड से खरीदारी की जाती है, उसकी हर महीने आपको प्रोसेसिंग फीस चुकानी पड़ती है। आपकी हर EMI के साथ यह जुड़ी होती है। EMI की ब्याज भले ही कंपनी खुद चुकाती है, लेकिन ब्याज पर 18% GST तो आपको देना ही पड़ता है। इसके अलावा बैंक सर्विस चार्ज भी वसूलते हैं। इन सबके कारण ही आपकी EMI जो शुरू में बताई गई होती है, क्रेडिट कार्ड का बिल उससे कहीं ज्यादा बनकर आता है।
कहने के लिए तो, इन सब चीजों की जानकारी आपको बिक्री वाले डाक्यूमेंट्स में दी गई होती है, लेकिन बहुत छोटे-छोटे हजारों अक्षरों के बीच उसक जानकारी को समझ पाना सामान्य ग्राहकों के वश की बात नहीं होती। वो तो सिर्फ मोटे-मोटे अक्षरों में दिख रही EMI की रकम देखकर खरीदारी कर डालते हैं और फिर पूरी अवधि तक ठगी के शिकार बने रहते हैं।
3. ब्याज को भी कीमत में शामिल करके बना देते हैं No Cost EMI
कई बार ऐसा भी होता है कि विक्रेता, किसी सामान की लागत का ब्याज, उसकी कीमत में ही शामिल करके, आपकी किस्तें बना देता है। इस तरह से आपको बिल्कुल भी अहसास नहीं हो पाता कि उसकी ब्याज पहले ही ली जा चुकी है। उदाहरण के लिए आपको 50 हजार का लैपटॉप, 5000 रुपए महीने की 10 No Cost EMI पर मिल रहा है।
हो सकता है कि उस लैपटॉप की लागत उस विक्रेता को 45000 ही पड़ी हो। वह लैपटॉप की कीमत में ब्याज की रकम को शामिल करके उसे 50 हजार में दे देता है। इस तरह से वह पहले ही आपसे ब्याज का पैसा ले चुका होता है।
निष्कर्ष: वास्तव में 0% interest जैसी कोई चीज नहीं होती और No Cost EMI जैसे ऑफर, सिर्फ ग्राहकों को ललचाने और किसी तरीके से सौदा करने के लिए प्रेरित करने का खेल (marketing gimmick) होता है।
No Cost EMI फायदे का सौदा या नुकसान का
No Cost EMI कई बुराइयों को समझने के बावजूद इसे बिल्कुल से बेकार चीज नहीं कह सकते। आखिरकार यह उस सौदे से जुड़े तीनों पक्षों के लिए लाभकारी होती है जैसे कि-
1. ग्राहक को पैसा चुकाने में सहूलियत मिल जाती है
ग्राहक को कोई भी बड़े कीमत का सामान लेने के लिए एकमुश्त रकम का जुगाड़ करने की जरूरत नहीं पड़ती। वह अपनी सुविधानुसार 3 महीने से लेकर 2 साल तक की किस्तों में उसका भुगतान कर सकता है। डिस्काउंट जरूर उसे नहीं मिलता, लेकिन अगर किसी सामान के बिना उसका काम अटक रहा है, वह तो मिल ही जाता है। कभी-कभी उस सामान के न होने से होने वाला नुकसान, आपक हाथ से छूटे डिस्काउंट के मुकाबले ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है।
उदाहरण के लिए, अगर आप कोई ऐसा बिजनेस करते हैं, जिसके लिए कंम्प्यूटर होना अनिवार्य है। जैसे कि ब्लागिंग या वेबसाइट डिजाइनिंग या आनलाइन सर्विस सेंटर। कंप्यूटर न उपलब्ध होने पर हो सकता है आपको रोज 100-200 या 500-1000 का भी नुकसान झेलना पड़ सकता है। ऐसे में आपको बिना डिस्काउंट के भी अगर नो कास्ट ईएमआई से कंम्पूयर मिल जाता है तो इसे फायदे का ही सौदा कहेंगे।
2. बैंकों का बिजनेस बढ़ता है, नए ग्राहक जुड़ते हैं
बैंक का फायदा यह होता है कि उसके पास हर महीने एक निश्चित रकम आने लगती है। इससे उसे अपना बिजनेस बढ़ाने में मदद मिलती है। उस बैंक के कार्ड पर छूट मिलने की जानकारी होने पर अन्य ग्राहक भी उस बैंक का कार्ड रखने को प्रेरित होते हैं। इससे उन्हे कुछ नए ग्राहक भी मिल जाते हैं। सामान या सेवा देने वाली कंपनियां भी, खुद को मिलने वाली रकम में से कुछ प्रतिशत, मार्जिन बैंको को दे देती है। इससे उनके डिस्काउंट की भी कुछ या पूरी की पूरी भरपाई हो जाती है।
3. कंपनियों की बिक्री के साथ-साथ फायदा भी बढ़ता है
सेल के समय, कंपनियां ज्यादा से ज्यादा माल बेचने की कोशिश करती हैं। कुछ कम लाभ कमाकर भी वे ज्यादा से ज्यादा माल निकालना चाहती हैं। ताकि उनके मार्जिन में आई कमी को बड़ी मात्रा में बिक्री से समायोजित किया जा सके। NO Cost EMI के माध्यम से उन्हें बड़ी संख्या में ग्राहक मिल जाते हैं और उनका, ज्यादा माल बेचने का उद्देश्य पूरा हो जाता है।
No Cost EMI के नुकसान
कई बार लोग, सेल या सस्ता सामान मिलने के चक्कर में, इतनी ज्यादा रकम की खरीदारी कर डालते हैं, कि उसकी EMI उन पर बोझ बन जाती है। इस बीच अगर व्यक्ति या उसके परिवार को किसी तरह की गंभीर बीमारी या अन्य किसी समस्या का सामना करना पड़ा तो फिर, वे हो सकता है किसी महीने या कुछ ज्यादा समय तक EMI भरने की स्थिति में न हों।
ऐसे में EMI ब्रेक होने लगती हैं और उन्हें भारी पेनाल्टी के साथ-साथ ऊंची ब्याज चुकानी पड़ती है। गौरतलब है कि क्रेडिट कार्ड की ब्याज 40% के आसपास पड़ती है। उस पर 18% की GST अलग से लगता है। इसलिए बहुत बड़ी रकम का सौदा क्रेडिट कार्ड EMI के माध्यम से करना ठीक नहीं माना जाता।