अगर आपको विदेश से पैसा मिलना हो या विदेश से आपके अकाउंट में कोई पेमेंट भेजी जानी हो तो तो आपसे बैंक अकाउंट नंबर के साथ-साथ TIN नंबर भी देने को कहा जाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि टिन नंबर क्या होता है? इसकी फुल फॉर्म क्या होती है और इसका मतलब क्या होता है? इसके बाद हम यह भी बताएंगे कि भारत में या विदेशों में टिन नंबर का इस्तेमाल कहां होता है? Know about TIN number in Hindi?
टिन नंबर क्या होता है? फुल फॉर्म और मतलब
- TIN का फुल फॉर्म होता है-Tax Identification Number
- इसका हिंदी में मतलब होगा- टैक्स संबंधी पहचान संख्या
अमेरिका और कुछ अन्य देशों में TIN नंबर का मतलब किसी बिजनेस या व्यक्ति की टैक्स पहचान संख्या (Tax Identification Number) से होता है। कहीं-कहीं इसे taxpayer identification number भी कहा जाता है। अमेरिका में टिन नंबर भी अलग-अलग तरह की संस्थाओं के हिसाब से अलग-अलग नामों से होते हैं, जैसे कि-
- SSN नंबर : अमेरिका के सामान्य नागरिकों, परमानेंट निवासियों और कुछ खास कैटेगरी के टेंपरेरी निवासियों को Social Security Administration ( SSN) नंबर जारी किया जाता है।
- ITIN नंबर: जिन लोगों को SSN नंबर नहीं मिल सकता (कानूनी शर्तों के कारण) उन्हें Individual Taxpayer Identification Number (ITIN) जारी किया जाता है।
- PTIN नंबर: अमेरिका में जो भी टैक्स रिटर्न दाखिल किए जाते हैं, उनके लिए Internal Revenue Service (IRS) विभाग की ओर से एक प्रिपेयरर टैक्स आईडेंटिफिकेशन नंबर (PTIN) भी जारी किया जाता है।
- ATIN नंबर: अमेरिका में अगर कोई माता-पिता कोई बच्चा गोद लेते हैं तो उसके लिए ये नंबर मिलता है। अगर किसी कारण से SSN नंबर जारी नहीं हो पाता तो फिर उस बच्चे के लिए Adoption Tax Identification Number (ATIN) जारी किया जाता है।
- EIN नंबर: कंपनियों, ट्रस्ट, एस्टेट वगैरह, जोकि अन्य लोगों को काम पर रखते हैं, उनके लिए Employer Identification Number (EIN) जारी किया जाता है।
कनाडा में इसके लिए Social Insurance Numbers (SIN) शब्द का इस्तेमाल होता है। वहां इसका इस्तेमाल रोजगार (employment), tax, सरकारी लाभ और क्रेडिट वगैरह के लिए होता है।
भारत में TIN नंबर की जगह पर PAN नंबर होता है
विदेशों में जिस काम के लिए TIN नंबर का इस्तेमाल होता है, भारत में उसी काम के लिए PAN नंबर जारी किया जाता है। यानी कि आप TIN नंबर मांगे जाने पर अपना PAN नंबर दे सकते हैं। PAN नंबर 11 अंकों का होता है, जैसे कि ABCTY1234D। इसमें-
- पहले तीन अक्षर: AAA से ZZZ के बीच की सीरीज में से किन्हीं तीन अक्षरों से मिलकर बना होता है।
- चौथा अक्षर: ये आपकी टैक्सपेयर कैटेगरी को बताता है जैसे कि किसी व्यक्ति के लिए P, एचयूएफ के लिए ‘H’, कंपनी के लिए ‘C’ और ट्रस्ट के लिए ‘T’अक्षर होता है।
- पांचवां अक्षर: पैन नंबर का पांचवां अक्षर आपके नाम के अंतिम शब्द का पहला अक्षर होता है। जैसे कि शर्मा का S, गुप्ता का G या तिवारी का T
- अगले चार अक्षर: अगले चार अक्षर एक सीक्वेंस नंबर होते हैं। ये 0001 से लेकर 9999 तक के बीच में कुछ भी हो सकता है।
- दसवां अक्षर: ये एक चेक डिजिट होता है, जिसे कंप्यूटर सिस्टम अपने आप तय करके रख देता है। आपके अन्य डिटेल्स के आधार पर कोई एक अल्फाबेट (A से Z के बीच में कोई भी अक्षर) यहां हो सकता है।
कहां-कहां इस्तेमाल होता है PAN/TIN नंबर
- इनकम टैक्स रिटर्न में : इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने में PAN नंबर की जरूरत पड़ती है। दरअसल आपका इनकम टैक्स अकाउंट ही पैन नंबर पर बना होता है।
- बैंक अकाउंट या डिपॉजिट में: बैंक अकाउंट खोलने या FD या अन्य किसी प्रकार का जमा खाता (depository account) खोलने के लिए भी पैन कार्ड डिटेल्स देने पड़ते हैं।
- बड़ी रकम जमा करने में: 50 हजार रुपए से ज्यादा bank account में जमा करने पर भी पैन अकाउंट नंबर देना पड़ता है।
- क्रेडिट कार्ड/बैंक लोन में: क्रेडिट कार्ड या बैंक लोन के लिए आवेदन करने के लिए पैन कार्ड डिटेल्स देने पड़ते हैं।
- अचल प्रॉपर्टी खरीदने में: 5 लाख रुपए से अधिक कीमत की जमीन, मकान या अन्य कोई अचल संपत्ति (immovable property) खरीदने या बेचने पर भी पैन कार्ड डिटेल्स देने पड़ते हैं।
- होटल बिल चुकाने में: 25 हजार रुपए से ज्यादा का रेस्टोरेंट का बिल चुकाने पर भी PAN डिटेल्स देने पड़ते हैं।
- महंगे वाहन खरीदने में: कार या महंगे वाहन को खरीदने या बेचने के लिए भी PAN डिटेल्स देने की जरूरत पड़ती है।
- इन्वेस्टमेंट करने में: शेयर, म्यूचुअल फंड, डिबेंचर, बांड्स वगैरह में 50 हजार रुपए से अधिक निवेश करने पर भी PAN डिटेल्स देने पड़ते हैं
- महंगी ज्वैलरी खरीदने में: 2 लाख रुपए से अधिक की ज्वैलरी खरीद के लिए भी PAN डिटेल्स देने पड़ते हैं।
इन सभी कामों के अलावा PAN कार्ड का इस्तेमाल मान्य पहचान प्रमाण डॉक्यूमेंट्स के रूप में भी होता है। आधार कार्ड बनवाने, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने, पासपोर्ट बनवाने या किसी अन्य प्रकार की सरकारी योजना के लिए आप अपने आईडेंटिटी डॉक्यूमेंट्स के रूप में पैन कार्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं।
जीएसटी सिस्टम लागू होने के पहले कारोबारियों को मिलता था TIN नंबर
भारत में TIN नंबर का इस्तेमाल GST लागू होने के पहले तक होता था। राज्यों के VAT सिस्टम के तहत कारोबार करने वाले कारोबारियों या कंपनियों को यह नंबर देना पड़ता था। यह 11 अंकों की एक विशिष्ट पंजीकरण संख्या (unique registration number) होती थी। इनमें पहले दो अंक, संबंधित राज्य के कोड होते थे। बाकी के 9 अंक, उस District या Town को चिह्नित करते थे, जहां पर वह बिजनेस या कंपनी रजिस्टर्ड होती थी।
प्रत्येक राज्य के वाणिज्य कर विभाग (Commericial Tax Departments) की ओर से कारोबारियों को TIN जारी किया जाता था। दो राज्यों के बीच कारोबार होने पर TIN नंंबर देना अनिवार्य होता था। VAT के तहत होने वाले payments की निगरानी (Track) करने में यह मददगार होता था।
हर साल इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय TIN नंंबर का उल्लेख करना अनिवार्य था। 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू होने के बाद सभी राज्यों के वैट (State VATs) को भी GST में मिला दिया गया।
अब कारोबारियों को TIN नंबर की जगह पर GSTIN नंबर मिलता है। आम बोलचाल में इसे जीएसटी नंबर भी कहते हैं। राज्य के बाहर या राज्य के भीतर, सभी तरह के कारोबार में GSTIN नंबर का ही इस्तेमाल होता है।