प्रॉपर्टी, सोना, गहने या शेयर वगैरह बेचने से जो फायदा होता है, सरकार उस पर भी टैक्स लेती है। इस टैक्स को Capital Gain Tax कहते हैं। ऐसी कोई प्रॉपर्टी खरीदने के तुरंत बाद बेचने पर Short Term Capital Gain Tax लगता है और कुछ साल बाद बेचने पर Long Term Capital Gain Tax लगता है। इस लेख में हम जानेंगे कि लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स क्या होता है? इसे कब चुकाना पड़ता है और कितना चुकाना पड़ता है। What is Long Term Capital Gain Tax in Hindi.
लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स क्या होता है?
सामान्य रूप से, किसी प्रॉपर्टी (Capital Asset) को खरीदने के 3 साल के भीतर बेचने पर, मिलने वाले फायदे (Capital Gain) पर जो Tax लगता है, उसे Short Capital Gain Tax कहते हैं। जबकि, प्रॉपर्टी को खरीदने के 3 साल बाद बेचने पर जो टैक्स लिया जाता है, उसे Long Capital Gain Tax कहते हैं।
लेकिन, भारत में कुछ Capital Asset के संबंध में 1 या 2 साल बाद बेचने पर मिले लाभ पर भी Long Term Capital Gain Tax लगता है। जैसे कि-
- अचल संपत्ति (जमीन, घर, बिल्डिंग) को खरीदने के 2 साल बाद बेचने पर Long Term Capital Gain Tax चुकाना पड़ता है।
- किसी कंपनी के शेयर, डिबेंचर्स, व सरकारी बांड्स वगैरह को 1 साल बाद बेचने पर ही Long Term Capital Gain Tax चुकाना पड़ता है।
- UTI यूनिट, इ्क्विटी म्यूचुअल फंड, जीरो कूपन बांड वगैरह को भी 1 साल बाद बेचने पर Long Term Capital Gain Tax देना पड़ता है।
लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स कितना लगता है?
- सामान्यत: Long Term Capital Gain पर 20% की दर से टैक्स लगता है, लेकिन कुछ मामलों में यह 10% निर्धारित किया गया है।
- जिन मामलों में हम Capital Gain निकालने के लिए Indexation का प्रयोग करते हैं, उन में 20 प्रतिशत Tax देना पड़ता है।
- जिन मामलों में Capital Gain निकालने के लिए Indexation का प्रयोग नहीं किया जाता, उनमें 10 प्रतिशत Tax देना पड़ता है।
Capital asset और कैपिटल गेन क्या होते हैं?
आप सरल भाषा में किसी भी तरह की प्रॉपर्टी को capital asset या पूंजी संपत्ति कह सकते हैं। ऐसी प्रॉपर्टी में आपकी पूंजी बढ़ाने का गुण या आपकी पूंजी बढ़ाने में मदद करने का गुण शामिल होता है। इसलिए लोग इनमें निवेश (Investment) करते हैं। तो निवेश के उद्देश्य से खरीदी गई संपत्तियों को ही पूंजी संपत्ति या Capital Asset कहा जाता है।
ये चल संपत्ति (movable property) के रूप में भी हो सकते हैं और अचल संपत्ति (Immovable Property) के रूप में भी। जैसे कि ये घर, बिल्डिंग, दुकान, जमीन, प्लांट, मशीन, कार, ज्वैलरी, के रूप में भी हो सकते हैं और शेयर, बांड, डिबेंचर, पेटेंट, ट्रेडमार्क, जीरो कूपन बांड, मूल्यवान कलाकृतियां वगैरह किसी भी रूप में ये हो सकते हैं। यहां तक किसी अन्य प्रकार के कानूनी अधिकार (legal right) के मैनेजमेंट और नियंत्रण संबंधी अधिकार भी कैपिटल असेट माने जाते हैं।
ऐसी किसी Capital Asset (प्रॉपर्टी, शेयर, जेवरात वगैरह) को बेचने पर जो लाभ मिलता है उसे Capital Gain कहते हैं। सामान्य रूप से हम किसी प्रॉपर्टी को जितनी कीमत पर खरीदा जाता है, उससे अधिक कीमत पर उसे बेचा जाता है। पॉपर्टी बेचने पर यह जो अधिक कीमत मिलती है, वही उसका Capital Gain होता है। सरकार इस फायदे (Capital Gain) पर टैक्स लेती है, जिसे Capital Gain Tax कहते हैं।
भारत में कुछ संपत्तियों को कैपिटल एसेट में नहीं गिना जाता
- व्यापार या प्रोफेशन के लिए खरीदे गए स्टॉक, वस्तुएं और कच्चा माल
- व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए, लिए गए कपड़े, फर्नीचर वगैरह
- ग्रामीण इलाकों में कृषि भूमि के रूप में मौजूद जमीन
- 6½% गोल्ड बांड्स (1977) या 7% गोल्ड बांड्स(1980) या नेशनल डिफेंस गोल्ड बांड्स (1980)
- स्पेशल बियरर बांड्स (1991)
- गोल्ड डिपॉजिट स्कीम के अंतर्गत जारी किए गए गोल्ड डिपॉजिट बांड
- गोल्ड मॉनिटाइजेशन स्कीम 2015 के अंतर्गत जारी किए गए डिपॉजिट सर्टिफिकेट
लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स में अंतर
Long Term Capital Gain Tax और Short Term Capital Gain Tax पर, एक दूसरे से एकदम उल्टा नियम लागू होता है। Long Term Capital Gain Tax जहां 3 साल बाद Capital Asset बेचने पर लगता है, वहीं Short Term Capital Gain Tax 3 साल से पहले Capital Asset बेचने पर लगता है।
लेकिन, अचल संपत्ति (जमीन, घर, बिल्डिंग) के मामलों में 2 साल के भीतर बेचने पर Short Term Capital Gain Tax लगता है। इसी तरह, किसी कंपनी के शेयर, डिबेंचर्स, व सरकारी बांड्स वगैरह को 1 साल के भीतर बेचने पर Short Term Capital Gain Tax लगता है।