अगर आप एक सीमा से ज्यादा सैलरी पाते हैं तो आपका TDS कट जाता है। इसी तरह, एक निश्चित सीमा से अधिक ब्याज, किराया, कमीशन, इनाम वगैरह पर भी सरकार TDS कटवा लेती है और कुछ खास तरह की खरीदारियों पर TCS वसूल लेती है। इसी तरह एक सीमा से अधिक बिजनेस इनकम होने पर भी आपको एडवांस टैक्स चुकाना पड़ता है। इसी तरह वस्तुओं (Goods) और सेवाओं (Services) के बिजनेस पर GST टैक्स चुकाना पड़ता है। एक निश्चित सीमा से अधिक आमदनी पर Surcharge और Cess भी लिए जाते हैं। इस तरह से हम देखते हैं कि सरकार, अलग-अलग तरह की आमदनी पर अलग-अलग तरीकों से टैक्स वसूलती है।
हमारे कई पाठकों ने जानना चाहा था कि टैक्स क्यों लगाया जाता है? कुछ लोगों ने यह भी जानना चाहा था कि टैक्स कितने प्रकार के होते हैं? इस लेख में हम आपके इन प्रश्नों के उत्तर देंगे और कुछ अन्य उपयोगी तथ्यों को भी साझा करेंगे।
टैक्स क्यों लगाया जाता है?
सरकार को अपने कामों के लिए धन या पैसों की जरूरत पड़ती है। विभिन्न सरकारी योजनाओं और उनसे जुड़े विभागों के संचालन के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। देश और राज्यों के विकास के लिए और जनता को सुविधाएं देने के लिए धन की जरूरत पड़ती है। ये पैसे सरकार, मुख्य रूप से टैक्सों के माध्यम से ही प्राप्त करती है। नीचे हम कुछ ऐसे उद्देश्यों की सूची दे रहे हैं, जिनके लिए सरकार को टैक्स लगाने की जरूरत पड़ती है।
- बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली पानी वगैरह के लिए खर्च हेतु
- सरकारी कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन, भत्ते वगैरह देने के लिए
- विकास और कल्याणकारी योजनाओं के लिए
- लोंगों तक स्वास्थ्य व बीमा सुविधाएं पहुंचाने के लिए
- लोगों को शिक्षा व रोजगार सुविधाओं के लिए
- वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए
- सैन्य व रक्षा संबंधी खर्चों के लिए
- कानून व व्यवस्था कायम रखने के लिए
- आकस्मिक व आपदा नियंत्रण संबंधी खर्चों के लिए
भारत में टैक्स के प्रकार
भारत में सरकार या अधिकृत संस्थाओं की ओर से टैक्स वसूलने का सिस्टम दो श्रेणियों (Categories) में बंटा हुआ है-
प्रत्यक्ष कर | Direct Taxes
ये वो Tax होते हैं, जिन्हें सरकार सीधे आपसे वसूल लेती हैं। जैसे Income Tax, प्रॉपर्टी टैक्स, Corporate Tax, प्रोफेशनल टैक्स, TDS, TCS, कैपिटल गेन टैक्स वगैरह। इन्हें प्रत्यक्ष कर यानी Direct Taxes इसलिए कहते हैं क्योंकि इन्हें जिस व्यक्ति पर लगाया जाता है, Direct उसी से वसूला भी जाता है। इन्हें भरने वाला आगे चलकर किसी और पर उसका भार ट्रांसफर नहीं कर सकता। टैक्स की भाषा में कहें तो कराघात (Impact of Tax) और करापात Incident of Tax दोनों समान व्यक्ति पर होता है। इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स ऐसे ही टैक्स हैं।
अप्रत्यक्ष कर | Indirect Taxes
ये वो Tax होते हैं जिन्हें सरकार आपसे अप्रत्यक्ष तौर पर (Indirectly) वसूल करती है। मतलब यह कि Government ने पहले किसी और से टैक्स वसूल लिया, फिर Tax चुकाने वाले ने आगे चलकर किसी और से टैक्स की भरपाई कर ली। इस तरह, अप्रत्यक्ष कर, वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में शामिल करके वसूले जाते हैं। Excise Duty, Service Tax, मनोरंजन कर आदि इसी श्रेणी के Tax हैं। हाल ही में आया GST भी इसी तरह का अप्रत्यक्ष कर है। आर्थिक भाषा में कहें Indirect Taxes में कराघात (Impact of Tax) और करापात (Incident of Tax) दोनों अलग-अलग व्यक्ति पर होता है।
प्रमुख प्रत्यक्ष करों के नाम
इनकम टैक्स | Income tax
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह लोगों की Income पर लगाया जाता है। लोग जो भी कमाते हैं, उसमें से एक तय हिस्सा सरकार उनसे Tax के रूप में ले लेती है।
भारत में, बहुत कम आमदनी वालों लोगों को Income Tax के दायरे से बाहर रखा गया है। इसके ऊपर जितना ज्यादा आपकी आमदनी का स्तर होता है, उतना ज्यादा प्रतिशत में आपसे टैक्स लिया जाता है।
किस स्तर की कमाई होने पर कितना हिस्सा (Percentage में) टैक्स लिया जाएगा, इसकी घोषणा सरकार हर साल वित्त वर्ष (Financial Year) शुरू होने से पहले बजट पेश करते समय करती है। इसके लिए हर साल नया Tax Slab घोषित किया जाता है।
टीडीएस | Tax Deduction at Source-TDS
लोगों की आमदनी के कुछ तरीके ऐसे होते हैं, जिनमें भुगतान की मात्रा (Payment amount ) पहले से तय होता है, जैसे कि सैलरी, ब्याज, किराया, ठेके का भुगतान वगैरह। ऐसे मामलों में सरकार Salary देने वाले या Contract Payment करने वाले को ही Payment से पहले ही टैक्स काटकर जमा करने का जिम्मा सौंपती है।
इस प्रक्रिया में चूंकि आमदनी देने वाले स्रोत से ही टैक्स कटौती कर ली जाती है, इसलिए इसे स्रोत पर कर कटौती Tax Deduction at Source या TDS कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, अगर आप किसी कंपनी के वेतनभोगी (Salaried) कर्मचारी हैं और आपकी सैलरी टैक्स देने लायक है तो कंपनी तनख्वाह देने से पहले TDS काट लेती है। बचा हिस्सा ही आपके बैंक अकाउंट में जमा करती है।
प्रोफेशनल टैक्स | Professional Tax
अगर आप कमाऊ पेशे में हैं professional हैं) तो आप जिस राज्य की सीमा में काम कर रहे हैं, वहां की राज्य सरकार आप पर यह टैक्स लगा सकती है। देश के ज्यादातर राज्यों में यह टैक्स लगता है। प्राइवेट संस्थाओं में काम करने वाले हर इस Catagory के व्यक्ति को यह Tax देना पड़ता है। यह आपके Employer की ओर से हर महीने काट लिया जाता है और वहां की राज्य सरकार या नगर निगम के पास जमा कर दिया जाता है। हर राज्य में इसकी दर अलग-अलग हो सकती है।
सुविधाओं पर टैक्स | Perquisite Tax
Employer की ओर से अपने Staff को Salary के अलावा दी जाने वाली अतिरिक्त सुविधाओं पर Perquisite Tax लगता है। उदाहरण के लिए, आपकी कंपनी आपको Salary के अलावा जो कार-ड्राइवर, आवास, क्लब मेंबरशिप, Employee stock ownership plan-ESOP आदि की सुविधाएं देती है उन पर Perquisite Tax देना पडता है। इस Tax के अंतर्गत यह देखा जाता है कि क्या Company द्वारा दी गई सुविधा का वास्तविक फायदा Staff को हो रहा है कि नहीें।
उदाहरण के लिए. अगर आपको Company सिर्फ कंपनी के Business संबंधी कार्यों के लिए कार उपलब्ध कराती है तो उस पर आपको Tax नहीं देना होगा। इसके विपरीत, अगर वही Car आपको घर से आने-जाने और अन्य निजी कार्यों के लिए भी उपलब्ध कराई जाती है तो इस पर इस पर होने वाले खर्च पर Perquisite Tax लगेगा। अगर दोनों तरह के कामों में यही Car लगाई जाती है तो भी यह Tax लगेगा।
कैपिटल गेन्स टैक्स| Capital Gains tax
Property, Gold, Jwellery, Shares और B0nds वगैरह को बेचने से होने वाले लाभ को Capital Gain कहा जाता है। सरकार Capital Gain पर भी टैक्स लेती है। Capital Gain दो प्रकार के होते हैं-long Term Capital Gain और Short Term Capital Gain। हर पूंजी पर Long Term और Short Term की गणना और उस पर Tax का Rate अलग-अलग होता है।
- Real Estate यानी घर, दुकान, Office आदि को खरीदने के दो साल बाद बेचा जाता है तो इस पर मिलने वाले लाभ को long Term Capital Gain कहा जाता है। इन्हें खरीदने के दो साल के अंदर बेचा जाता है तो उस पर मिलने वाले लाभ को Short Term Capital Gain कहा जाता है।
- Gold, Jwellery, सिक्के आदि के लिए लॉन्ग टर्म तीन साल का होता है।
- शेयर मार्केट में Stocks और Mutual Funds की खरीद-बिक्री के संबंध में 1 साल के उपर की अवधि को Long Term कहा जाता है, जबकि 1 साल से कम की अवधि को Short Term की श्रेणी में रखते हैं।
प्रॉपर्टी टैक्स | Property Tax/Municipal Tax
अगर आप किसी बडे़ शहर में निवास कर रहे हैं, जहां Municipal Corporation है तो आपको अपनी प्रॉपर्टी पर property tax या Municipal Tax भी देना पड़ता है। आपकी प्रॉपर्टी में आपके आवासीय भवन, Office, फैक्टरी बिल्डिंग, गोदाम, Flat, दुकान वगैरह हो सकती हैं। Property Tax उस टैक्स से अलग होता है जो आपको Income Tax के अंतर्गत Property से होने वाली आमदनी पर देना पड़ता है। इसे सिर्फ Property पर आपके मालिकाना हक होने के कारण देना पड़ता है। दरअसल Property Tax नगर निगम तमाम सुविधाओं के बदले में लेता है, जैसे कि सड़कें, सीवेज सिस्टम, बिजली, पार्क आदि।
गिफ्ट टैक्स | Gift Tax
भारत में अगर आप 50 हजार रुपए से अधिक का Gift प्राप्त करते हैं तो आपको सरकार को उस पर Tax देना पड़ता है। यह Tax अन्य स्रोतों से आमदनी शीर्षक के तहत गिना जाता है। अगर यह आपके Family के किसी सदस्य या नजदीकी Relative की ओर से दिया गया है जैसे कि माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन आदि तो इसे Tax से मुक्त रखा गया है। स्थानीय अधिकारियों से मिला Gift भी टैक्स से छूट प्राप्त होता है। शादी के वक्त मिले गिफ्ट पर भी टैक्स नहीं लगता है।
कॉर्पोरेट टैक्स | Corporate Tax
कोई कंपनी यदि भारत में कारोबार करती है तो उस पर Corporate Tax लगाया जाता है। दरअसल जिस तरह हम लोगों की कमाई पर इनकम टैक्स लगता है उसी तरह कंपनियों की कमाई पर कॉरपोरेट टैक्स लगता है। फिलहाल 400 करोड़ से कम टर्नओवर वाली कंपनियों पर 22% टैक्स लगता है। उस पर सेस और सरचार्ज मिलाकर कुल 25.17% बैठता है।
लेकिन नई कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए 1st October 2019 या उसके बाद शुरू की गई कंपनियों के लिए कार्पोरेट टै्क्स की दर सिर्फ 15% रखी गई है। सेस और सरचार्ज मिलाकर यह 17.01% पड़ता है। विदेशी कंपनियों पर 40 प्रतिशत Corporate Tax लगता है। हालांकि यह उस देश के साथ Trade संधियों पर भी निर्भर करता है।
डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स (DDT)
कंपनियां अपने मुनाफे को दो तरीके से इस्तेमाल करती हैं। पहला मुनाफे को आने वाले दिनों या विस्तार के लिए अपने पास रख लेना। दूसरा मुनाफे को कंपनी के मालिक और शेयरहोल्डरों के बीच डिविडेंड के तौर पर बांट देना। जब मुनाफे का इस्तेमाल पहले तरीके से होता है तो उसे कॉरपोरेट टैक्स या MAT देना होता है। लेकिन अगर मुनाफा का हिस्सा शेयरहोल्डरों को Dividend के तौर पर दिया जाए तो उस पर डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स लगता है। कंपनी इस टैक्स को काटकर ही डिविडेंड बांटती है। यानी हमें आपको शेयर पर जो डिविडेंड मिलता है उस पर पहले से टैक्स कट चुका होता है। और इसीलिए डिविडेंड की कमाई पर इनकम टैक्स नहीं लगता है।
सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स | Securities Transaction Tax
आप Stock Exchange में जो शेयर की खरीद-बिक्री करते हैं, उस पर मिलने वाले लाभ पर तो Capital Gain Tax देना ही पड़ता है इसके पहले भी जब आप शेयर बाजार में Share आदि का सौदा कर रहे होते हैं, उसी समय उस खरीद या बेच पर भी Tax देना पडता है। इसे Securities Transaction Tax कहते हैं। यह Equity Shares, derivative instruments, equity oriented Mutual Funds आदि की खरीदारी करने और बेचने, दोनों पर लगता है। वैसे इसकी मात्रा इतनी कम होती है कि Tax देने वाले को इसका भार ज्यादा प्रभावित नहीं करता।
प्रमुख अप्रत्यक्ष कर| Major Indirect Taxes
जीएसटी | Goods And Services Taxes-GST
GST यानी माल एवं सेवा कर देश भर में 1 जुलाई 2017 से लागू हुआ है। इसे इसके पहले केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से लागू तीन दर्जन से ज्यादा Indirect Taxes को हटाकर लागू किया गया है। मतलब यह कि वस्तुओं और सेवाओं पर अब पहले लगने वाले ढेरों Taxes की बजाय अब अकेला GST टैक्स लगना है। GST में जो टैक्स मिलाए गए हैं, उनमें से प्रमुख Taxes के नाम हम नीचे सारणी में दे रहे हैं।
केंद्र के वो टैक्स जिनकी जगह GST ने ली है | राज्यों के वो टैक्स जिनकी जगह GST ने ली है |
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चार प्रकार के जीएसटी | Three Forms Of GST
कहने को तो जीएसटी एक टैक्स है, लेकिन इसको चार नामों से लगाया गया है।
- CGST यानी केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर | Central Goods And Services Tax
किसी राज्य के अंदर, उसी राज्य के दो पक्षों के बीच सौदा होने पर केंद्र सरकार की ओर से CGST यानी केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर वसूला जाएगा। Tax का यह Amount केंद्र सरकार को मिलेगा। - SGST यानी प्रादेशिक वस्तु एवं सेवा कर | State Goods And Services Tax
किसी राज्य के अंदर, उसी राज्य के दो पक्षों के बीच सौदा होने पर SGST यानी प्रादेशिक वस्तु एवं सेवा कर भी वसूला जाता है। Tax का यह Amount उस राज्य सरकार को मिलता है, जहां सौदा हुआ है। - UTGST केंद्र शासित राज्य का जीएसटी: Union Territory Goods and Services Tax : किसी केंद्र शासित प्रदेश के अंदर के दो पक्षों के बीच में सौदा होने पर, UTGST लगाया जाता है। UTGST उस केंंद्र शासित राज्य को मिलता है, जहां पर वह सौदा हुआ है।
- IGST एकीकृत प्रादेशिक वस्तु एवं सेवा कर | Integrated Goods And Services Tax
दो अलग-अलग राज्यों के दो पक्षों के बीच सौदा होने पर केंद्र सरकार की ओर से IGST यानी एकीकृत प्रादेशिक वस्तु एवं सेवा कर वसूला जाएगा। Tax का यह Amount आगे चलकर केंद्र और राज्य सरकार बीच बंट जाएगा।
स्टांप शुल्क , रजिस्ट्री फीस, ट्रांसफर टैक्स
अगर आप कोई अचल संपत्ति (Immovable Property) खरीदते हैं तो आपको उसकी कीमत तो उसके पुराने मालिक को देनी पड़ती है। उस कीमत का कुछ प्रतिशत आपको स्टांप शुल्क और रजिस्ट्रेशन फीस के रूप में भी देना पड़ता है। ऐसा आपके नाम प्रॉपर्टी के कानूनी दस्तावेज (legal document) तैयार करने के लिए किया जाता है। अलग-अलग तरह की प्रॉपर्टी पर उसके स्थान व स्वरूप के मुताबिक ये शुल्क अलग-अलग हो सकते हैं। इसके अलावा अगर प्रॉपर्टी को अगर बेचा नही गया है और ट्रांसफर के माध्यम से आपके नाम किया गया है तो भी ट्रांसफर टैक्स देना पड़ता है।
स्टांप शुल्क, उस प्रॉपर्टी के सहमति मूल्य या circle rate (राज्य सरकार द्वारा तय Property की न्यूनतम खरीद दर) पर लगता है। दोनों में जो भी ज्यादा होगा, उसका एक तय प्रतिशत Stamp Duty के रूप में देना पड़ता है। Stamp Duty के अलावा सौदे की रकम का 1 प्रतिशत Registration Charge के रूप मेें भी देना पड़ता है। कुछ राज्यों में महिलाओं के नाम प्रॉपर्टी खरीदने पर कम स्टांप शुल्क लगता है।
Note: GST लागू होने के बाद भी ये शुल्क जारी रहने हैं। क्योंकि सरकार ने इन्हें GST Act में नहीं लिया है। वैसे 13 वें Finance Commission में जीएसटी पर बनाई गई टास्क फोर्स ने Stamp Duty को भी जीएसटी के तहत लाने की सिफारिश की थी, लेकिन फिलहाल इसे इससे बाहर ही रखा गया है।
मंडी शुल्क| Mandi Shulk
देश भर में 1 जुलाई 2017 से GST लगने के बाद ज्यादातर Indirect Taxes खत्म हो गए हैं, लेकिन मंडियों में के कृषि उपज की बिक्री पर लगने वाला मंडी शुल्क अब भी बरकरार है। कोई भी किसान किसी मंडी में जब अपना माल बेचने जाता है तो उस पर मंडी शुल्क लगता है। मंडी शुल्क की दरें देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं। अधिकांश राज्यों में यह डेढ़ से 2 प्रतिशत है, हरियाणा-पंजाब में 4 प्रतिशत भी है।