1 जुलाई 2017 से भारत में सामान (Goods) और सेवा (Services) से जुड़े कारोबारों (Businessess) पर GST टैक्स लागू हो चुका है। इसके पहले मौजूद सभी तरह के टैक्सों को इसी एक टैक्स (GST) में मिला दिया गया है। इसमें व्यापारियों की कैटेगरी और टर्नओवर के हिसाब से रजिस्ट्रेशन के अलग-अलग विकल्प हैं। उसी के हिसाब से अलग-अलग तरीके के रिटर्न दाखिल करने पड़ते हैं। अलग-अलग तरह के सामानों और सेवाओं पर अलग-अलग दर से जीएसटी टैक्स लगता है। कुछ नियम और परिभाषाएं तो ऐसी हैं कि अभी भी सामान्य व्यापारियों को नहीं समझ पड़तीं। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए, हमने GST पर आसान भाषा में, यह लेख तैयार किया है।
इस लेख में, हम समझेंगे कि GST क्या है? इसका फुल फॉर्म क्या होती है? GST का हिंदी में मतलब (Meaning) क्या होता है? जीएसटी रजिस्ट्रेशन किसके लिए अनिवार्य है? इनके अलावा भी जीएसटी के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी शामिल की है। ध्यान दें: कभी-कभी गूगल सर्च में ‘गस्त इन हिन्दी’ शब्द का विकल्प भी दिखता है। वास्तव में ये GST के बारे में ही पूछा गया होता है।
जीएसटी क्या है ? What is GST in Hindi?
जीएसटी का Full Form है- Goods And Services Tax । हिन्दी में इसका अर्थ होता है- माल एवं सेवा कर। इसे, वस्तुओं (Goods) की खरीदारी करने पर या सेवाओं (Services) का इस्तेमाल करने पर चुकाना पड़ता है। जुलाई 2017 के पहले मौजूद कई तरह के टैक्सों (Excise Duty, VAT, Entry Tax, Service Tax वगैरह) को हटाकर, उनकी जगह पर, सिर्फ एक टैक्स GST के नाम से लागू किया गया है। 1 जुलाई 2017 से इसे भारत के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू कर दिया गया है।
पहले के टैक्स सिस्टम में क्या थी खामी
1 जुलाई 2017 के पहले, देश और राज्यों में कई अलग-अलग तरह के टैक्स सिस्टम लागू थे। उत्पादन (Production) से लेकर बिक्री (Sale) तक के बीच में, अलग-अलग स्टेजों पर, अलग-अलग तरह के कई टैक्स चुकाने पड़ते थे। उदाहरण के लिए, फैक्टरी से जैसे ही माल निकलता था, सबसे पहले उस पर उत्पाद शुल्क (Excise Duty) चुकाना पड़ता था। कई सामानों पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (Additional Excise Duty) भी लगता था। माल अगर एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजा जा रहा है तो राज्य में घुसते ही Entry Tax चुकाना पड़ता था। इसके बाद जगह-जगह चुंगी का भी सिस्टम था।
माल बेचते समय, Sales Tax या VAT चुकाना पड़ता था। कई मामलों में Purchase Tax भी लगता था। कोई सामान अगर विलासिता (Luxury) की श्रेणी में आता है तो उस पर Luxury Tax अलग से चुकाना पड़ता था। वह सामान अगर किसी होटल या रेस्टोरेंट आदि में उपलब्ध कराया जा रहा हो तो Service Tax अलग से देना पड़ता था। इस प्रकार फैक्टरी से लेकर उपभोक्ता (Consumer) के हाथों में पहुंचने तक किसी सामान या सेवा को कई तरह की Duties या Taxes से गुजरना पड़ता था।
GST में, कारोबारियों को Taxes के इस मकड़जाल से बचाने की कोशिश की गई है। सभी तरह के कारोबार पर एक ही तरह का टैक्स GST लागू कर दिया गया है। इसलिए अब कारोबारियों को जीएसटी नंबर लेना पड़ता है।
जीएसटी लागू करने की जरूरत क्यों पड़ी?
भारतीय संविधान में Tax संबंधी जो पुराने नियम थे, उनमें वस्तुओं के उत्पादन (Production/Manufacturing) और सेवाओं पर टैक्स लगाने का अधिकार केंद्र सरकार (Central Government) के पास था। जबकि,वस्तुओं की बिक्री (Sale) पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्य सरकारों (State Government) को दिया गया था।
केंद्र और राज्यों ने अपने-अपने हिसाब से Tax बनाए और Categories तय कर दीं। इसी चक्कर में एक-एक सामान पर कई-कई Tax लद गए। कभी-कभी तो टैक्स के उपर Tax के हालात भी बन गए। छोटे व्यापारियों और कंपनियाें के लिए, इनके नियम-कानूनों से निपटना बड़ा मुश्किल काम था।
इन विसंगतियों को दूर करने के लिए GST को ऐसे एकीकृत कानून के रूप में लाया गया है, जो माल एवं सेवा दोनों पर लग सके। और, जिसे उत्पादन (Production) से लेकर बिक्री (Sale) तक लगाया जा सके।
Production और Sale का अलग-अलग पेंच खत्म करने के लिए GST का सिर्फ एक आधार तय कर दिया गया, Supply। इसके लिए बाकायदा Tax कानूनों में बदलाव किया गया और संसद में बाकायदा संविधान संशोधन (Constitution (Amendment) की प्रक्रिया अपनाई गई।
जीएसटी की प्रमुख विशेषताएं | Major Features Of GST
देश में मौजूद पुराने टैक्स सिस्टम की खामियां दुरुस्त करने के लिए, ही सरकार ने GST लागू किया। 1 जुलाई 2017 से लागू हुए इस नए टैक्स सिस्टम की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं—
1. उत्पादन की बजाय उपभोग पर टैक्स | Tax on Consumption
GST सिस्टम में, टैक्स की वसूली तब होती है, जब कोई सामान (goods) या सेवा (service) को बेचा जाता है। वस्तु या सेवा की अंतिम कीमत में उस पर निर्धारित GST टैक्स भी शामिल होता है। वस्तु या सेवा की सप्लाई देने वाला (seller), इसे सप्लाई लेने वाले (Consumer) से वसूलता है। बाद में इसे सरकार के खाते मे जमा कर देता है। मतलब यह कि, GST की वसूली की जिम्मेदारी सामान या service देने वाले पर होती है। किसी वस्तु या सेवा के साथ, जितनी बार खरीद-बिक्री की प्रक्रिया होगी, हर बार GST चुकाना होता है।
2. इनपुट क्रेडिट सिस्टम से टैक्स वापसी | Input Credit System
किसी वस्तु के उत्पादन से लेकर, अंतिम उपभोक्ता के हाथ पहुंचने तक कई बार खरीदे-बेचे जाने की प्रक्रिया होती है। अब चूंकि, GST सिस्टम में, हर खरीद-बिक्री पर टैक्स चुकाना पड़ता है। ऐसे में, वस्तु, अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने तक बहुत महंगी हो जानी चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। क्योंकि इसमें Input Credit System लागू होता है। इस सिस्टम में, आखिरी स्टेज पर टैक्स लगने से पहले जहां-जहां Tax जमा किया गया है,उसको वापस पाने की भी व्यवस्था है।
अगर आप अंतिम या वास्तविक उपभोक्ता नहीं हैं और पहले के किसी Stage में आपने GST जीएसटी जमा किया है तो उसके बदले आपको Credits मिलते हैं। इन Credits का इस्तेमाल आप, सरकार को GST भुगतान के लिए कर सकते हैं।
हर महीने GST रिटर्न भरने के दौरान आप Tax Credit System के माध्यम से अपना GST एडजस्ट करा सकते हैं। ये Tax Credit System क्या है, इसको अलग से हमने Example के साथ नीचे समझाया है।
3. टैक्स के ऊपर टैक्स नहीं चढ़ेगा | No Cascading Of Taxes
GST के पहले जो टैक्स व्यवस्था लागू थी, उसमें न सिर्फ एक वस्तु पर, कई अलग-अलग Tax लगते थे, बल्कि कई मामलों में, टैक्स के ऊपर Tax भी लग जाते थे। ऐसा इसलिए होता था, क्योंकि बहुत सी वस्तुएं दो या दो से अधिक तरह की Categories में आ जाती थीं। अब ये दिक्कत खत्म हो गई है। क्योंकि अब GST अंतिम रूप से Consumer को ही अदा करना है। बीच में अगर किसी को GST चुकाना पड़ा है तो, उसका पैसा टैक्स क्रेडिट सिस्टम से समायोजित (Adjust) हो जाता है।
4. पूरी तरह ऑनलाइन सिस्टम | पकड़ में आ जाएगी गड़बड़ी
GST सिस्टम में सारे सौदों की जानकारी Online अपडेट रखनी है। हर सौदे की रसीद, सप्लाई लेने वाले और सप्लाई देने वाले, दोनों के पास रहेगी। दोनों अपनी-अपनी रसीदों की मदद से Tax Credit पा सकेंगे। सौदों का मिलान न हुआ तो Online ही गडबड़ी पकड़ में आ जाएगी। हर स्टेज पर GST जमा होने की जिम्मेदारी उपर वाले कारोबारी की होने से Tax भुगतान की चेन नहीं टूटेगी। क्योंकि कोई भी कारोबारी अपने Credit का नुकसान नहीं करना चाहेगा।
5. बड़े कारोबारियों के लिए E-Invoicing अनिवार्य
1 अक्टूबर 2023 से सभी ऐसे कारोबारियों के लिए, इलेक्ट्रॉनिक रसीदें (E-Invoicing) जारी करना अनिवार्य कर दिया गया है, जिनका सालाना टर्न ओवर 10 करोड़ रुपए है। टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता बढ़ाने और टैक्स चोरी रोकने के मकसद से यह E-Invoicing की व्यवस्था लागू की जा रही है। खासकर इससे फर्जी बिल बनाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने वालों पर लगाम लगेगी।
6. बड़े कारोबारियों को एक हफ्ते के भीतर ई-इनवाइस अपलोड करना अनिवार्य
1 मई 2023 से ई-इनवाइसिंग को लेकर नया नियम लागू हो रहा है। अब 100 करोड़ रुपये और उससे अधिक टर्नओवर वाले कारोबारियों को 7 दिनों के भीतर अपना इलेक्ट्रॉनिक चालान IRP (इनवॉयस रजिस्ट्रेशन पोर्टल) पर अपलोड करना होगा। अगर IRP पर चालान अपलोड नहीं किए गए हैं तो वह कारोबारी, जीएसटी भुगतान के बदले में मिलने वाले इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का लाभ नहीं उठा सकेंगे।
उदाहरण के लिए, अगर किसी चालान की तारीख 1 जून 2023 है, तो उसे 8 जून 2023 के बाद रिपोर्ट नहीं किया जा सकेगा। सकता है। चालान पंजीकरण पोर्टल का ऑटो वेरिफिकेशन सिस्टम, किसी भी चालान को 7-दिन बाद रिपोर्ट करने से अपने आप रोक देगा। यह प्रतिबंध सिर्फ चालान वाले सौदों पर लागू होगा। डेबिट नोट्स या क्रेडिट नोट्स की रिपोर्टिंग पर इस टाइम लिमिट को लागू नहीं किया जाएगा।
6. टैक्स रेट पर मनमानी नहीं | No Arbitrary Rates
GST के रेट में किसी तरह के बदलाव के लिए जीएसटी परिषद (GST Council) बनाई गई है। केंद्रीय वित्त मंत्री (Central Finance Minister) इस परिषद के अध्यक्ष होंगे। सभी राज्यों के वित्त मंत्री भी इसके सदस्य होंगे। जीएसटी काउंसिल के किसी किसी फैसले पर, केंद्र के पास एक तिहाई शक्ति Vote की शक्ति होगी, और दो-तिहाई शक्ति राज्य सरकारों के पास होगी। हर राज्य की Voting Power बराबर होगी। परिषद के किसी भी फैसले को मंजूरी मिलने के लिए उसे Council के तीन चौथाई Votes की जरूरत होगी।
जीएसटी सबके लिए फायदेमंद कैसे? How beneficial for all
GST सिस्टम लागू होने से, टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ गई है। इससे एक तरफ सरकार को सुविधा हो गई है, वहीं दूसरी तरफ, कारोबारियों और उपभोक्ताओं के लिए भी यह फायदेमंद होगा। आइए समझते हैं, कैसे-
सामान्य लोगों के लिए फायदे | Advantages for Common People
- वस्तुओं पर तरह-तरह के Tax से छुटकारा मिल गया है। टैक्स के उपर Tax खत्म होने से वस्तुओं की लागत में अनावश्यक बढ़ोतरी नहीं हो पाती। इससे सामान्य उपभोक्ता के यह फायदे की स्थिति है।
- जीवन के लिए बहुी ज्यादा जरूरी चीजों पर Tax के Rate कम रखे गए हैं। इससे सामान्य लोगों के ज्यादा काम आने वाली चीजें सस्ते में मिल सकेंगी। गरीब और कम आमदनी वाले लोगों को राहत रहेगी।
- कारोबार का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा GST के दायरे में आ जाने से सरकार की आमदनी बढ़ेगी। इससे शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन जैसी आम लोगों की सुविधाओं में सुधार के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।
व्यवसायियों के लिए फायदे | Advantages for Businessmen
- हर राज्य में Taxes का अलग-अलग ढांचा होने से, सामान कारोबारियों के लिए, उसे समझना आसान नहीं था। तरह-तरह की चुंगियां अलग से बोझ बढ़ाती थीें। टैक्स अधिकारी और कर्मचारी भी नियमों की पेचीदगियों का गलत फायदा उठाते थे। अब कारोबारियों को इन झंझटों से नहीं गुजरना पड़ेगा। कारोबार आसान और तेज गति से होगा। इससे फायदे की मात्रा भी बढ़ेगी।
- GST सिस्टम में कारोबार संबंधी सारे Documents ऑनलाइन होते हैं। किसी तरह की गलती होने पर या Document खो जाने पर उसे Online ही सुधारने की सुविधा होगी। कारोबारियों को बेमतलब, दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।
- लघु उद्योगों और उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए, केंद्र व राज्य सरकारें रियायत देती हैं। इसका फायदा उठाने के लिए बड़े कारोबारी भी अपने बड़े उद्यम को ही कई छोटे-छोटे हिस्सों में करके दिखाते थे। GST सिस्टम में, इसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। कंपनियां ज्यादा सस्ता और प्रतियोगी माल बना सकेंगी। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में टक्कर देने लायक माल बनाया जा सकेगा।
सरकार व प्रशासन को फायदे | For Government And Administration
- पहले जो सिस्टम था, उसमें Market का बहुत बड़ा हिस्सा अंडर ग्राउंड होता था। वस्तुओं के उत्पादन से लेकर बिक्री तक की श्रृंखला में बहुत सी जगहों पर काम दिखाया ही नहीं जाता था। उन पर Tax भी सरकार को नहीं मिल पाता। अब GST में ऐसे छूटे लोग भी Tax की इस चेन में जुड़ जाएंगे। इससे टैक्स चोरी की गुंजाइश कम हो जाएगी और सरकार की Income बढेगी।
- हर स्टेज पर खरीदारी और बिक्री की रसीदों का मिलान होना जरूरी होगा। तभी पहले के Stages में जमा किया गया Tax Credit का फायदा कारोबारियों को मिल सकेगा। इस चेन में चूंकि हर किसी को Bill देना और बाद में उनकी रसीद पेश करना जरूरी होगा। इसलिए Market पूरी तरह Accounted हो जाएगा और Black Market पर लगाम लगेगी।
- पहले जो टैक्स सिस्टम था, उसमें एक ही वस्तु, अगल-अलग राज्यों में अलग-अलग दाम पर मिलती थी। कुछ लोग इसका फायदा उठाते थे और आसपास के राज्यों से सस्ते सामान की तस्करी करने लगते थे। अब पूरे देश में एक जैसा टैक्स होने से वस्तुओं के दाम एक जैसे होंगे। इससे तस्करी पर लगाम लगेगी।
- Taxes की संख्या कम होने से केन्द्र और राज्य के अधिकारियों और कर्मचारियों पर भार कम होगा। Registration और Tax भुगतान संबंधी सारे Detail ऑनलाइन होने से निगरानी बहुत आसान होगी। Recovery की लागत में कमी आएगी। सरकारों के लिए Tax Administration और Management का काम बहुत आसान हो जाएगा।
GST ने किन-किन टैक्सों का स्थान लिया?
देश और राज्यों में वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले तीन दर्जन से अधिक Indirect Taxes को अब GST के अंदर शामिल कर दिया गया है। इन टैक्सों की सूची हम नीचे दे रहे हैं।
केंद्र के वो टैक्स जिनकी जगह जीएसटी ने ले ली है (Central Taxes Replaced By GST) | राज्यों के वो टैक्स जिनकी जगह जीएसटी ने ले ली है (State Taxes Replaced By GST) |
|
|
चार अलग-अलग नामों से वसूला जाता है GST टैक्स
जीएसटी वैसे तो एक ही टैक्स होता है, लेकिन, इसे चार अलग-अलग नामों से लिया जाता है-
- CGST: (सेन्ट्रल गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स | Central Goods and Service Tax)
अगर कोई सौदा (लेन-देन) एक ही राज्य के दो पक्षों (कारोबारियों) के बीच हो रहा हो तो केंद्र सरकार के हिस्से के रूप में CGST को चुकाना पड़ता है। - SGST: स्टेट गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स | State Goods and Service Tax
अगर कोई सौदा (लेन-देन) एक ही राज्य के दो पक्षों (कारोबारियों) के बीच हो रहा हो तो, उस राज्य सरकार के हिस्से के रूप में SGST चुकाना पड़ता है। - UTGST/UGST: यूनियन टेरेटरी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स | Union Territory Goods and Service Tax
अगर कोई सौदा (लेन-देन), किसी केंद्र शासित राज्य (UT) के दो पक्षों (कारोबारियों) के बीच हो रहा हो तो, उस केंद्र शासित राज्य के हिस्से के रूप में UTGST चुकाना पड़ता है। इसी को UGST भी कहते हैं। - IGST: इंटिग्रेटेड गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स | Integrated Goods and Service Tax
अगर कोई सौदा (लेन-देन), दो अलग-अलग राज्यों के कारोबारियों के बीच हो तो, केंद्र सरकार और राज्य सरकार, दोनों का हिस्सा, एकसाथ IGST के रूप में लगता है। यह पहले पूरा केंद्र सरकार के पास जाता है। बाद में उस राज्य को आधा हिस्सा मिलता है, जहां सप्लाई भेजी जाती है।
For Example : मान लेते हैं कि एक Company ने थोक व्यापारी से कच्चा माल खरीदा। सौदे के दोनों पक्ष एक ही राज्य के अंदर स्थित हैं। कुल माल 10 लाख रुपए का है और इस पर 18 प्रतिशत GST लगता है। यह सौदा होने पर थोक व्यापारी उस कंपनी से 10 लाख की खरीद पर 18 प्रतिशत टैक्स वसूलेगा। केंद्र और राज्य दोनों के Tax Department को वह आधा-आधा यानी 90-90 हजार रुपए जमा कर देगा। अगर वही सौदा दो अलग-अलग राज्यों के कारोबारियों के बीच होगा तो सिर्फ IGST के रूप में 1 लाख 80 हजार रुपए केंद्र सरकार को देने पड़ेंगे। बाद में इसमें से 90 हजार रुपए उस राज्य को मिलेगा, जिसने खरीदारी की थी।
जीएसटी की 5 तरह की दरें | 5 types of GST Rates
GST Council ने अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं के लिए जीएसटी के कुल पांच स्लैब मंजूर किए हैं। ये हैं-
- 00% GST : जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि अनाज, नमक, गुड़, ताजी सब्जियां वगैरह।
- 05% GST : जीवन के लिए सामान्य आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि चीनी, तेल, मसाले, चाय, काफी, उर्वरक वगैरह।
- 12% GST : रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि नमकीन, दंतमंजन, छाता, दवाइयां, वगैरह।
- 18% GST : मध्यम स्तर का जीवन जीने वाले लोगों के इस्तेमाल में आने वाली वस्तुएं जैसे कि डिटरजेंट, चॉकलेट, मिनरल वाटर, आइसक्रीम, शैंपू, रेफ्रिजरेटर वगैरह।
- 28% GST : विलासी और हानिकारक श्रेणी में आने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि- पान मसाला, ऑटोमोबाइल, फाइव स्टार होटल में ठहरना वगैरह।
Note: अति आवश्यक वस्तुओं पर कम से कम Tax लगाकर और विलासी व जीवन के लिए कम महत्व वाली वस्तुओं पर ज्यादा से ज्यादा Tax लगाकर जीएसटी को ज्यादा से ज्यादा न्यायपूर्ण बनाने की कोशिश की गई है। जबकि कच्चा माल मसलन अनाज और ताजी सब्जियों आदि पर Zero टैक्स तय किया गया है। इसी प्रकार Education और Health सुविधाओं को Tax के दायरे से बाहर रखा गया है।
जीएसटी में टैक्स का पेमेंट सरकार तक कैसे पहुंचता है?
अब ये समझते हैं कि जो टैक्स जीएटी के रूप में सरकार को देंगे, उसे सरकार आपसे वसूलेगी कैसे-
मान लेते हैं कि एक पैंट का कपड़ा है, यह उत्पादक Company (निर्माण स्थल) से चलकर Consumer तक पहुंचता है। इस बीच उसे कुछ Stages से होकर गुजरना पड़ता है। यहां हमने Concept को आसानी से समझाने के लिए सिर्फ तीन Stage लिए हैं। हकीकत में यह इससे ज्यादा या कम भी हो सकते हैं।
- सबसे पहले उत्पादक Company से माल Wholesaler के पास जाता है
- Whole Saler से फिर माल Retailer के पास जाता है
- Retailer से फिर माल Consumer यानी ग्राहक के पास पहुंचता है
जैसा कि ऊपर हमने बताया कि जीएसटी खरीदार से वसूल किया जाएगा। लेकिन इससे पहले सामान की जिन-जिन Stages पर दाम में बढ़ोतरी (Value Addition) हुई है (सामान के स्वरूप में बदलाव या अन्य किसी लागत के कारण) वहां-वहां पर हर बार GST वसूल किया जाना है। जो पहले वाले खरीदार ने GST अदा किया था, वो जब आगे दूसरे को माल बेचेगा तो उससे वो GST वसूल लेगा। तो अब यह स्थति होगी-
- उत्पादक Company से माल लेते वक्त Whole Saler पर जीएसटी लगेगा। लेकिन कंपनी उसे लेकर भरेगी।
- Whole Saler से माल लेते वक्त Retailer पर जीएसटी लगेगा। होलसेलर उसे सामान के मूल्य के साथ वसूल करके भरेगा।
- Retailer से माल लेते वक्त Consumer जीएसटी अदा करेगा। रिटेलर पर भरने की जिम्मेदारी होगी। final consumer पर जीएसटी भरने के जिम्मेदारी नहीं है।
Input Tax Credit से दोहरे टैक्स भुगतान से मुक्ति
यहां हम देखते हैं कि माल की खरीदारी के क्रम में GST तो सबने अदा किया। पहले Whole Saler ने, फिर Retailer ने और फिर Consumer ने। तो फिर जो पहले बताया गया कि सिर्फ Consumer जीएसटी अदा करेगा, उसका क्या Funda है? आइए समझते हैं।
दरअसल Whole Saler और Retailer ने अपनी बारी में जो GST जमा किया था, उसे वो आगे चलकर Tax Credit के माध्यम से सरकार से वापस पा सकते हैं। जीएसटी का Monthly Return भरते समय वे इसे अपने उपर बन रही देनदारी में Adjust करा सकते हैं।
ये जो टैक्स के Adjust होने की प्रक्रिया है इसे ही जीएसटी में Tax Credit System नाम दिया गया है। इस Tax Credit की व्यवस्था का फायदा बीच के स्टेजों में आने वाले व्यवसायी तभी उठा पाएंगे, जबकि उनके पास उन स्टेजों पर की गई बिक्री की रसीद हों। क्योंकि जो खरीदार होगा, उसकी भी रसीदें सरकार के पास Online मौजूद होंगी और जिसने बेचा है उसकी भी। जब दोनों स्तर की रसीदों का मिलान सही होगा, तभी उन बीच वाले व्यवसायियों को Tax Credit का फायदा मिल सकेगा।
जीएसटी वसूली का उदाहरण | GST Payment Example
जीएसटी वसूली की इस प्रक्रिया को और आसान से समझने के लिए उदाहरण के लिए हम Stepwise घटनाक्रम को एक Table में दिखा रहे हैं।
मान लेते हैं कि एक Pant बनाने के लिए 2 मीटर कपड़ा टेलर ने कपड़ा उत्पादक से खरीदा। कपड़े का दाम 200 रुपए प्रतिमीटर है। मान लेते हैं कि इस Product पर 10 प्रतिशत GST लगता है। कपड़े की खरीद से शुरू होकर ग्राहक के हाथों में पहुंचने तक इस पर GST कैसे लगेगा, देखते हैं।
Note: जीएसटी वसूले जो के बाद केंद्र और राज्य सरकार दोनों के हिस्से में बंटकर जाएगा। हम यहां दोनों को जोडकर कुल 10 प्रतिशत जीएसटी अपनी गणना में शामिल करेंगे। इससे Concept को समझने में भी आसानी रहेगी।
Stepwise घटनाक्रम | खरीदी जा रही वस्तु का दाम(जीएसटी के पहले) | जीएसटी चुकाना पड़ेगा (खरीदार को) | खरीदारी के लिए चुकाई गई कुल धनराशि | अंतिम रूप से (टैक्स क्रेडिट होने के बाद) सरकार के हिस्से में आया जीएसटी |
Step 1: हैंडलूम कारीगर से टेलर ने 200 रुपए मीटर का 2 मीटर कपड़ा खरीदा पैंट बनाने के लिए। | 400 रुपए | 40 रुपए( सौदे का 10 प्रतिशत) | 440 रुपए | 40 रुपए |
Step 2: टेलर ने पैंट तैयार करके अपना मेहनताना जोड़कर पैंट 700 रुपए में रिटेलर को बेच दी। | 700 रुपए | 70 रुपए (सौदे का 10 प्रतिशत) | 770 रुपए | 30 रुपए( 40 रुपए टैक्स क्रेडिट के माध्यम से टेलर को वापस मिल जाएंगे) |
Step 3: रिटेलर ने पैंट बेची ग्राहक को 800 रुपए में | 800 रुपए | 80 रुपए | 880 रुपए | 10 रुपए ( 70 रुपए टैक्स क्रेडिट के माध्यम से टेलर को वापस मिल जाएंगे) |
निष्कर्ष: Consumer यानी अंतिम ग्राहक की जेब पर 880 रुपए का बोझ पड़ा | ,, | ,, | ,, | Total: 40+30+10=80 रुपए |
- इस Table में हम देखते हैं कि माल (पैंट) उत्पादक से लेकर ग्राहक तक पहुंचने की प्रक्रिया में तीन बार GST दिया गया।
- तीनों में से पहले के दोनों Stages पर दिया गया GST सरकार ने Tax Credit के माध्यम से Tailer और WholeSaler को वापस कर दिया।
- आखिरकार, जो जीएसटी की मात्रा अंतिम ग्राहक से ली गई थी, सरकार के पास उतना ही Net GST जमा बचेगा।
जीएसटी रजिस्ट्रेशन लेना किन कारोबारियों के लिए अनिवार्य
जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराने की अनिवार्यता, दो शर्तों के हिसाब से निर्धारित की गई है-
सामान्य कारोबारियों के लिए टर्नओवर लिमिट के हिसाब से
- सामान्य राज्यों के कारोबारियों को सालाना 40 लाख रुपए टर्नओवर होने पर जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है। (विशेष राज्यों को छो़ड़कर बचे सभी राज्यों को सामान्य राज्य माना गया है। विशेष राज्यों के नाम इसी पैराग्राफ में नीचे दिए गए हैं)
- विशेष राज्यों के कारोबारियों को सालाना 20 लाख रुपए टर्नओवर होन पर जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है (विशेष राज्यों के नाम नीचे लिस्ट में देखें)
- जम्मू और कश्मीर
- असम
- अरुणाचल प्रदेश
- मणिपुर
- मेघालय
- मिजोरम
- नगालैंड
- सिक्किम
- त्रिपुरा
- उत्तराखंड
- हिमाचल प्रदेश
कुछ खास तरह के बिजनेस पर बिना टर्नओवर के भी रजिस्ट्रेशन जरूरी
- अंतर्राज्यीय कारोबारी (Interstate suppliers): जो लोग, सामान या सेवाओं की दूसरे राज्यों को बिक्री करते हैं, उन्हें जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य होता है, भले ही उनका टर्न ओवर कितना ही कम हो या अधिक हो।
- कैजुअल कारोबारी (casual taxable persons.): जो लोग बिना किसी निश्चित स्थान के, अलग-अलग राज्यों में जाकर सीजन-सीजन में कारोबार करते हैं। इन्हें एक बार में 90 दिनों के लिए रजिस्ट्रेशन मिलता है, जिसे बाद में आगे भी बढ़वाया जा सकता है।
- रिवर्स जीएसटी वसूलने वाले (Reverse charge mechanism): सामान्य रूप से, जीएसटी में टैक्स वसूलने का जिम्मा, सामान या सेवा बेचने वाले का होता है। लेकिन, कुछ खास तरह के मामलों में जीएसटी वसूलने का जिम्मा उस कारोबारी का होता है, जोकि माल या सेवा खरीद रहा है। ये उल्टे हिसाब से जीएसटी वसूलने को Reverse GST कहा गया है। रिवर्स जीएसटी वाले कारोबारियों को भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
- रजिस्टर्ड कारोबारी के एजेंट (Agent of Registered Person): जीएसटी में रजिस्टर्ड किसी कारोबारी के एजेंट के रूप में काम करने वाले कारोबारियों को भी रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है।
- डिस्ट्रीब्यूटर्स या इनपुट सर्विस डिस्ट्रीब्यूटर्स : किसी एक हेड ऑफिस या क्षेत्रीय केंद्र की ओर से माल की खरीद करके, कई अलग-अलग सेंटरों से सामान बेचने वाले कारोबारियों (Distributors) को भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना जरूरी है। इन्हें इनपुट सर्विस डिस्ट्रीब्यूटर भी कहते हैं। क्योंकि ये जीएसटी का भुगतान करने के लिए हेड ऑफिस को मिले इनपुट क्रेडिट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- ई-कॉमर्स कंपनियां और सप्लायर्स : ऑनलाइन शॉपिंग या ऑनलाइन सर्विस देने वाली कंपनियों (E-Commerce Operator) को भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है। जैसे कि Flipkart, Amazon, snapdeal, myntra, IndiaMart वगैरह।
- एग्रीगेटर्स : अपनी वेबसाइट या पोर्टल पर लिंक के माध्यम से दूसरी कंपनियों की सर्विसेज या प्रोडक्ट्स तक ले जाने वाली कंपनी को एग्रीगेटर कहते हैं। ऐसी कंपनियां, दूसरी कंपनियों के प्रोडक्ट्स की विशेषताएं बताती हैं, तुलना पेश करती हैं और खरीदने के लिए लिंक भी उपलब्ध कराती हैं। जैसे कि Policybazaar, Paisabazaar, Ola and Uber वगैरह।
- OIDAR सर्विस देने वाली कंपनियां: OIDAR सर्विस का फुल फॉर्म होता है Online Information Database Access and Retrieval services। ये दूसरे किसी देश से इंटरनेट या नेटवर्किंग के माध्यम से सेवाएं देने वाली कंपनियां होती हैं। जैसे कि ऑनलाइन कोर्स, म्यूजिक वीडियो एंड मूवीज, E-books, क्लाउड सर्विस, डाटा स्टोरेज वगैरह।
जीएसटी रिटर्न के प्रकार। किसे कौन सा भरना पड़ता है?
किसी वित्त वर्ष के दौरान, जो भी आप खरीद और बिक्री करते हैं, उसका विवरण सरकार को देना पड़ता है। ये विवरण आप जीएसटी रिटर्न फॉर्म में भरकर जमा करते हैं। अलग-अलग कैटेगरी के व्यवसायियों को अलग-अलग तरह के जीएसटी रिटर्न फॉर्म भरकर जमा करने पड़ते हैं। नीचे हम GST के सभी रिटर्न का अलग-अलग परिचय दे रहे हैं।
GSTR-1
सभी सामान्य जीएसटी रजिस्ट्रेशन वाले कारोबारियों और casual taxable persons को यह रिटर्न दाखिल करना पड़ता है। जिन्होंने जीएसटी की QRMP स्कीम ( Quarterly Return Filing and Monthly Payment of Taxes) अपना रखी है, उन्हें हर तिमाही पर रिटर्न फॉर्म GSTR-1 भरकर जमा करना पड़ता है और जिन्होंने QRMP स्कीम नहीं अपना रखी है, उन्हें हर महीने GSTR-1 रिटर्न फॉर्म भरकर जमा करना पड़ता है।
उल्लेखनीय है कि 5 करोड़ रुपए से कम सालाना टर्नओवर वाले कारोबारियों को जीएसटी की QRMP स्कीम अपनाने की छूट है।
GSTR-2 और GSTR-3 (दोनों फिलहाल स्थगित)
GSTR-2 और GSTR-3 को दोनों रिटर्न पर फिलहाल सरकार ने रोक लगा रखी है। शुरुआती दौर में कारोबारियों को जीएसटी सिस्टम की ज्यादा जटिलताओं से बचाने के लिए सरकार ने इन्हें स्थगित कर दिया है। इन्हें स्थायी तौर बर भी बंद किया जा सकता है। इसलिए इनका ज्यादा डिटेल्स हम यहां नहीं देंगे। लेकिन, पाठकों की जानकारी के लिए इतना बता देते हैं कि
- GSTR-2 रिटर्न में हर महीने की खरीदारियों का विवरण भरकर जमा करना पड़ता।
- GSTR-3 रिटर्न में हर महीने की बिक्रियों और खरीदारियों का संक्षिप्त विवरण देना पड़ता।
GSTR-3B
सभी जीएसटी रजिस्टर्ड सामान्य कारोबारियों को GSTR-1 से भी पहले GSTR-3B को भरकर जमा करना पड़ता है। इस रिटर्न फॉर्म में कारोबारियों को अपनी बिक्रियों और खरीदारियों का मोटा-मोटा संक्षेप में विवरण देना पड़ता है। साथ ही चुकाए गए टैक्स और इस्तेमाल की गई इनपुट क्रेडिट्स और टैक्स देनदारियों के बारे में भी जानकारी देनी पड़ती है।
जिन लोगों ने जीएसटी की QRMP स्कीम अपना रखी है, उन्हें हर तिमाही के कारोबार के लिए, फॉर्म GSTR-3B भरकर जमा करना पड़ता है। वहीं जिन लोगों ने QRMP स्कीम नहीं अपना रखी है, उन्हें हर महीने के कारोबार के लिए GSTR-3B रिटर्न भरकर जमा करना पड़ता है।
GSTR-4
जीएसटी के तहत, कंपोजिशन स्कीम लेने वाले कारोबारियों को प्रत्येक वित्त वर्ष के अंत में यह रिटर्न फॉर्म (GSTR-4) भरकर जमा करना पड़ता है। इसमें आपको अपने कारोबार के सारे विवरण नहीं देने पड़ते और न ही रसीदें जमा करने का झंझट होता है। बस अपने टर्नओवर के हिसाब से एक फिक्स रेट पर जीएसटी टैक्स जमा कर देना पड़ता है।
GSTR-4 ने शुरुआती दौर में निर्धारित किए गए GSTR-9A का स्थान ले लिया है, जोकि वित्त वर्ष 2019-20 तक, कंपोजिशन कारोबारियों के सालाना रिटर्न के रूप में होता था। पहले GSTR-4 को हर तिमाही पर भरना पड़ता था, जिसकी जगह पर अब CMP-08 के नाम से नया फॉर्म लागू कर दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि 1.5 करोड़ तक सालाना टर्नओवर वाले कारोबारियों को जीएसटी में कंपोजिशन स्कीम लेने की छूट है। सिर्फ सेवा क्षेत्र में कारोबार करने वालों (service providers) को 50 लाख रुपए तक के टर्नओवर पर कंपोजिशन स्कीम अपनाने की छूट है।
GSTR-5 और GSTR-5 A
- विदेशी व्यवसायियों (non-resident foreign taxpayers) की ओर से भारत में कारोबार करने पर जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना पड़ता है। उन्हें हर महीने रिटर्न GSTR-5 दाखिल करना पड़ता है।
- इसी तरह, विदेश से इंटरनेंट या नेटवर्किंग के माध्यम से सेवाएं देने वाले कारोबारियों को हर महीने GSTR-5 A रिटर्न फाइल करना पड़ता है। इन्हें Online Information and Database Access or Retrieval Services (OIDAR) कहते हैं। जैसे कि जैसे कि music video, movies, E-books, online course,, cloud service, data storage वगैरह देने वाले विदेशी।
GSTR-6
जीएसटी में डिस्ट्रीब्यूटर्स या Input Service Distributor (ISD) के रूप में काम करने वाले कारोबारियों को हर महीने के कारोबार का विवरण देने के लिए, रिटर्न फॉर्म GSTR-6 भरकर जमा करना पड़ता है।
GSTR-7
जीएसटी सिस्टम में जिन व्यक्तियों या संस्थाओं को अपने भुगतानों पर TDS काटने का अधिकार है, उन्हें हर महीने का हिसाब रिटर्न फॉर्म GSTR-7 में भरकर जमा करना पड़ता है। इसमें उन्हे हर महीने काटे गए TDS का विवरण देना पड़ता है। साथ ही टीडीएस देनदारी और टीडीएस रिफंड का विवरण देना पड़ता है।
GSTR-8
जीएसटी में रजिस्टर्ड e-commerce कंपनियों को हर महीने अपने कारोबार का विवरण रिटर्न फॉर्म GSTR-8 में भरकर जमा करना पड़ता है। इसमें उन्हें अपने e-commerce platform के माध्यम से की गई सप्लाई के साथ-साथ वसूले गए TCS (collect tax at source ) के डिटेल्स देने पड़ते हैं।
GSTR- 9
जीएसटी में रजिस्टर्ड कारोबारियों को (कंपोजिशन स्कीम वालों को छोड़कर) हर वित्त वर्ष के बाद एक सालाना रिटर्न भी दाखिल करना पड़ता है। इसमें साल भर की बिक्री-खरीदारी के साथ-साथ टैक्स भुगतान के डिटेल्स देने पड़ते हैं। साल भर के दौरान जो भी मासिक (Monthly) और तिमाही (Quarterly) रिटर्न भरे गए होते हैं, उनका मिला-जुला लेखा इसमें होता है।
तो दोस्तों ये थी GST के बारे में जरूरी जानकारियां। ऐसे ही उपयोगी लेख और अपडेट के लिए आप हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जरूर जुड़िए।